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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्याय ५ चेतन मन से अचेतन मन पर पहुंचने का फल ही सिद्धियाँ यदि हमें इस संसार में रहते हुए प्यास लगती है तो, हमारी यही प्यास इस संसार में कहीं न कहीं पानी होने की सूचना भी देती है, और जब इस संसार में कहीं भी पानी मौजूद है तो, यह भी निश्चित ही है कि, उसे प्राप्त करने का कोई न कोई साधन इस संसार में होगा ही। ____सैद्धान्तिक रूप से प्रार्थना को समझने के लिए इस उपरोक्त बात को बड़े गहरे में समझ लेना चाहिए। बड़े गहरे में समझने का अर्थ यहाँ इतना ही है कि, हम कहीं केवल कौतूहल वश या केवल शौकिया ही तो प्रार्थना को समझना नहीं चाह रहे हैं । क्योंकि इस तरह से या तो हम प्रार्थना को समझ ही नहीं पायेगें या हमारा प्रार्थना में प्रवेश न होकर हम स्वयं प्रार्थना से दूर भटक जावेंगे। जब तक हमारे अन्दर मन में उस अमूर्त की प्यास नहीं लगती है । तब तक तो हमें यही समझना चाहिए कि अभी हमारे प्रार्थनामय होने का समय नहीं आया है। क्योंकि कोशिश करके कभी कहीं किसी को भी प्यास लग सकती है। हम ज्यादा से ज्यादा, प्यासे होने का अभिनय मात्र कर सकते हैं और देखने में भी. ज्यादातर ऐसा ही आता है । लोग परमात्मा का नाम भी शौकिया लेते हैं । हम अपने घर में हर माह सत्यनारायण की कथा करबाते हैं, लेकिन सच तो यह है कि माहवारी पंडित ही आकर हमें सुबह याद दिलाता है कि सेठ जी आज कथा होगी। और तब हम कथा सुन लेते हैं। इसमें भी ताज्जुब की बात यह है कि देर होने की वजह से मन में दुकान चल रही होती है और उधर पंडित जी को भी दूसरी जगह जाकर कथा कहनी है । इसलिए वह भी जल्दी में एकाध पृष्ठ छोड़कर पड़े जाता है । हम हर माह उसी एक ही कथा को बार-बार सुनते हैं लेकिन हम उस For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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