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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar साकार हमारा चिन्तन-निराकार हमारा मार्ग २२७ सजा सुनाता है, हमें नर्क में वही डालता है, हमें स्वर्ग में वही पहुँचाता है, किसी को अमीर बनाता है, किसी को गरीब बनाता है, किसी को राम का पार्ट करने को कहता है तो दूसरे को पुत्र के वियोग में दुखी दशरथ का तो किसी को केकयी का, किसी को सीता का। इस प्रकार सब उसी की ही माया है, उसी का ही खेल है, उसी की ही बिसात है; उसी की ही चालें हैं और उसी के ही हम मौहरे हैं और वह ही शतरंज खेल रहा है । इसलिये उसके भक्त फिर यही कहते हैं: जो कुछ किया सो त किया मैं किया कछु नाय । तो बिन मैंने कब किया, तू मोमे कब नाय ॥ जब बिसात पुरानी हो जाती है या मौहरे खराब हो जाते हैं तब वह दूसरी नयी बिसात बिछाने से पहले पुरानी को प्रलय करके हटा देता है। इस प्रकार हम जो भी कर्म करते हैं वही करता है चाहे हम चोरी करें या साहूकारी, पंडित बन कर कथा बाँचें अथवा भक्त बनकर हम उसके नाम को भजें, दुष्कर्म करके हम भोग विलास में व्यस्त रहें अथवा ज्ञान ध्यान करके हम अपनी तपश्चर्या करके राज्य करें। "जो तपेश्वरी वो राजेश्वरी" कहने का तात्पर्य यह है, हमें कुछ नहीं करना अपनी तरफ से, जैसा वह ही जब हमसे करायेगा तो उसी के अनुरूप वैसी ही परिस्थितियाँ हमारे समक्ष खड़ी करके हमसे वैसा ही करा लेगा क्योंकि हमारे करने से होता भी तो नहीं है बारबार हम करके थक ही तो गये हैं। यह तो है एक मत जिसमें हम उसको एक मालिक की तरह मान कर चलते हैं और अपने आपको उसका गुलाम । जैसे भी आदेश प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमें मिलते हैं उन्हें उस मालिक का आदेश मानकर उनका पालन करना हमारा कर्तव्य है, हम बधे हैं उसकी डोर से जिस प्रकार प्रेम में दो और दो पाँच हो जाते हैं । ऐसा ही इस मत के अनुसार होता है लेकिन इसमें कर्म भी है, फल भी है, For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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