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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कुण्डलिनी जागरण ही समाधि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६६ प्रकार की बाधा अलग से खड़ी कतना उचित नहीं समझा। इस कारण से शरीर झुकता ही चला गया, मुझे जब लगा कि मैं जो कि ६० डिग्री के समकोण पर बैठा था । अब मुश्किल से तख्त के साथ जिस पर मैं बैठा हुआ था, मुझमें और तब्त में ३० डिग्री का कोण होना चाहिए यानि में ६० डिग्री झुक गया था यह बात जब अच्छी तरह से मेरे जहन में उतर आयी कि आज तो शंका की कोई गुन्जाईस ही नहीं है मैंने आँखें खोल दीं । आंखें खोलते ही वह खिचाव समाप्त हो गया और सबसे बड़े ताज्जुब की बात तो यह थी कि मैंने अपने शरीर को बिलकुल समकोण की अवस्था में ही पाया ! इस बात पर जब गौर किया कि मैं अपने अनुभव में इतना झुक गया था लेकिन, शरीर बिलकुल भी नहीं झुका । क्या बात है । स्थूल शरीर का बिलकुल भी नहीं झुकना इस बात से भी सिद्ध हो रहा था, कि यदि मेरा शरीर इतना झुक जाता तो जो हाथ मेरे अपने घुटनों पर ज्ञान मुद्रा के रूप में रखे थे घुटनों पर से हट जाने चाहिए थे लेकिन वे ज्यों की त्यों अब भी उन्हीं घुटनों पर रखे थे इसलिए मुझे यह तो मानना ही पड़ा कि शरीर नहीं झुका था फिर क्या हुआ था मेरे होश में। तभी यह प्रश्न मेरे मस्तिष्क के गहरे से गहरे कोने में कौंध गया लेकिन उस समय किसी भी तरफ से कोई जबाब मैं प्राप्त नहीं कर सका । तो बिलकुल भी For Private And Personal Use Only जिस प्रकार से पुस्तकों में पढ़ा था उस हिसाब से यदि मेरे शरीर के सूक्ष्म स्वरूप स्वतः ही गिरने को था तो वह बिना कुण्डलिनी के जागृत हुये वह किस प्रकार से वह स्थूल से अलग हुआ ? मेरी समझ में ठीक से कुछ भी नहीं आया । उसी दिन यहाँ के पुराने लक्ष्मण मंदिर में एक वृद्ध बाबा जो कि यहाँ नित्य प्रति रामायण पर कथा करते हैं, जिनको इसी कारण से रामायणी जी के नाम से भी पुकारते हैं, उनके सामने जाकर अकेले में मैंने अपनी शंका रखी लेकिन उन्होंने अपनी सत्यता का प्रदर्शन करते हुये कहा कि मुझे इस प्रकार का कोई अनुभव नहीं हुआ है इसलिए मैं नहीं कह सकता कि यह क्या था या इसके बाद और क्या होने वाला है, लेकिन लगता ऐसा ही है कि यह स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर के अलग होने की ही तैयारी थी । इसी अस्पष्ट सी स्थिति को अपने मन में लिए मैं अपने घर वापिस आ गया था । उस दिन के बाद शायद भेद खोल देने के कारण से वह क्रिया फिर कुछ दिन नहीं हुई। दो चार दिन बाद मैं स्वयं भी फिर
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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