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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६८ www.kobatirth.org योग और साधना Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिन का मुझे ख्याल है, ध्यान करते करते समय शायद एक घण्टे से ऊपर हो गया अपनी जीभ को उल्टी करके उसी ज्ञान मुद्रा से बैठा था। मैंने उस समय बेचुरी मुद्रा लगा रखी थीं जिसमें तालुऐं में ऊपर की ओर चिपका लेते हैं तथा में अपने हुआ था, नींद न आये इसलिए प्रत्येक स्वाँस को राम नाम के साथ ही अन्दर ले रहा था तथा बाहर भी राम के नाम के साथ ही उसे निकाल रहा था । अपनी स्वाभाविक गति से वह आ जा रही थी। मुझे पता था कि सिद्धासन लगाकर अपने हाथों को लम्बा करके अपने मुड़े हुये घुटनों पर रखकर ज्ञान मुद्रा लगाकर बैठने के पश्चात् मेरा एक इन्च भी दायें वायें झुकना असम्भव था लेकिन इसी अवस्था में क्या महसूस करता हूँ कि मैं अप्रत्याशित रूप से अपने दाहिने हाथ की ओर बैठे-बैठे शुकता ही जा रहा हूं। मैंने अपनी आँखों को बन्द रखे रखे ही खूब चाहा कि मैं सीधा रह सकूं लेकिन अपने आपको सीधा करने की तमाम कोशिशें मेरी व्यर्थ ही रहीं। जब इसके बाद और ज्यादा खिचाव अपने दाहिनी ओर मैंने महसूस किया तब मैंने अपनी बन्द आँखों को खोलने का फैसला किया कि क्या बात है ? मैं क्यों एक तरफ गिरा जा रहा हूँ । लेकिन जैसे हो मैंने अपनी आंखें खोली; मैं आश्चर्य चकित हुए वगैर नहीं रह सका । क्योंकि मेरी कल्पना के अनुसार मेरा शरीर उस समय कम से कम २० डिग्री तक झुका हुआ होना चाहिये था लेकिन मेरी उस धारणा के विपरीत मेरा शरीर बिलकुल सीधा ही था । इसमें जरा भी झुकाव नहीं था । जब कुछ नहीं समझ सका तब एक ख्याल यह भी सेरे मन में आया कि कहीं कोई अशरीरी मुझे इस शरीर में से खींच तो नहीं रहा था। थोड़ी सी देर के लिए तो मैं भय से भी ग्रस्त हो गया था लेकिन जब यह विचार आया कि जब तक अपनी आंखों को खोलने की क्षमता मुझ में है । जिनको खोलते ही मेरी वह स्थिति बिलकुल सामान्य हो जाती है तो आगे जो होगा वह भी देखा जायेगा | मतलब. यह है कि मानसिक रूप से मैं पूर्णतः स्वस्थ था । वह दिन बड़े ही आराम से बीत गया। दूसरे दिन फिर वही स्थिति शुरू हुई । मैं फिर दहिनी ओर झुकने लगा। मैं भी तैयार था, देखें कितना झुकता हूँ । मैंने अपने आपको अपनी तरफ से और ढील दे दी यानि मैंने उस समय किसी For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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