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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०० योग और साधना उसी स्थिति को पाने की अपनी तरफ से चाह भी करने लगा था लेकिन फिर भी कोई खास सफलता हाथ नहीं लगी। . करीब पन्द्रह दिन बाद फिर वही उसी प्रकार की स्थिति बनी, लेकिन कोई इससे ज्यादा यात्रा आगे नहीं बढ़ सकी जब काफी दिनों तक इस स्थिति में कोई अन्य नया पन नहीं आया तब धीरे धीरे मेरे मन में कोई विशेष आग्रह इस स्थिति के प्रति नही रहा था, कभी थोड़ी बहुत हो भी जाती थी कभी नहीं भी होती थी, इसी तरह एक साल के करीब और गुजर गया । अभी पिछले साल १९८२ में जून माह की १४ तारीख को अंगरी की शारदा पीठ के जगद्गुरू शंकराचार्य अपने चर्तुमास प्रवास के लिए दिल्ली जाते हये भरतपुर एक रात्रि को यहाँ रुके । दूसरे दिन दोपहर को उन्होंने भरतपुर के नगर सेठ श्री सन्तोषी नाल जी के यहाँ आम साधकों के हितार्थ विचार संगम का एक कार्यक्रम ३ बजे से ४ बजे सांय तक रखा था। मुझे जब इसकी जानकारी हुई तो मैंने तुरन्त अपनी शंकायें तीन चार पृष्ठों में लिखी और समय पर पहुँच गया । उनके समक्ष करीव दो तीन सौ आदमी वहाँ उपस्थित थे लेकिन उनमें ज्यादातर या तो संवाददाता थे जो इस देश में हो रहे धर्मान्तरण के ऊपर उनके विचार जानना चाहते थे । कुछ ऐसे थे जिनको अपने किताबी ज्ञान की खुजलाहट हो रही थी जो अपने ज्ञान को बघारकर अपनी खुजली मिटा रहे थे, कम से कम साधक तो उनमें नहीं थे । मैंने जब अपने लिखे हुए पृष्ठ उन्हें दिये, वे सबसे पहले उनको ही पढ़ने लगे, करीबी पाँच मिनट बाद ही उन्होंने मुझे उस भीड़ में से सबसे आगे इशारे से बुलाकर अपने तस्त से बिलकुल सटकर बैठने का आदेश दिया । मैं उनके तख्त के नीचे ही इस तरह से बैठ गया कि पैर तख्त के अन्दर ही घुस गये थे, इस स्थिति में उनके चेहरे से मेरा चेहरा केवल दो ढाई फीट की दूरी पर ही था । मैं सोच रहा था कि मैंने जो शंकायें लिखी हैं वे शायद सबके सामने चर्चा करने योग्य नहीं हैं । इसलिए इन्होंने मुझे अपने पास बुलाकर बिठा लिया है । फिर उनसे मेरी इस प्रकार बात चीत हुई श्री शंकराचार्य जी-तुम्हें किसने बताया, यह सब करने को ? मैं-मैंने कहा, "कुछ तो पारिवारिक संस्कार तथा कुछ श्री ओमानंद For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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