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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar योग और साधना और अन्दर ही अन्दर तिलमिला भी गई। खैर धीरज रखते हुये, उसने दूसरा प्रश्न इशारे से ही किया। जिसमें उसने अपना दाहिना हाथ का पंजा इस लड़के को दिखाकर दो बार हिला दिया था। लड़के ने सोचा-यह अब आँख तो फोड़ेगी नहीं क्योंकि मैंने इसकी दोनों आँखों को फोड़ने का कह दिया था लेकिन अब यह मुझे थप्पड़ मारेगी । मैं इसे धंसा मारूगा । इसलिये यह मूर्ख लड़का जोर-जोर से अपनी मुट्ठी को कस कर उसे दिखाने लगा। दरबारियों ने एक बार फिर हर्ष ध्वनि की और राजकुमारी के सन्मुख होकर बोले, "अबकी बार आपने इनसे पूछा था-दो बार अपने हाथ के पंजे को हिलाकर कि पाँच और पाँच दस इन्द्रियां हैं तो इन्होंने अपना जबाव भी देखो दृढ़ता से अपनी मुट्ठी को कस कर दिया है कि सारी मेरे वश में हैं।" इस बात को तो सुनकर राजकुमारी भीतर तक बौखला गई। कहने का तात्पर्य यह है कि इस प्रकार लड़की ने कुछ प्रश्न और किये । उस मूर्ख लड़के ने ऐसे ही जबाव जो उसके मूर्खतापूर्ण मस्तिष्क में आये, उसने वहाँ दिये। उन सभी का वहां के दरबारियों ने बड़ी सुन्दर-सुन्दर व्याख्या की और उस राजकुमारी को बेवकूफ बनाकर एक मूर्ख लड़के के हाथों पराजित करवा दिया। लड़की की प्रतिज्ञा के अनुसार उसी समय उस लड़के के साथ उस राजकुमारी की शादी पण्डितों ने करवा दी। जब दो दिन बाद उस लड़के ने बोलना शुरू किया । तब उसे दरबारियों के ऊपर बहुत गुस्सा आया और सोचा कि उसके साथ तो बहुत बड़ा धोखा किया मया हैं। लेकिन, अब क्या किया जा सकता था। उसकी शादी तो उस मूढ़ के साथ हो चुकी थी। वह जो भी बात करती वह उसकी प्रत्येक बात का जबाब ऊट-पटांग ही देता था । जब राजकुमारी ज्यादा सहन न कर सकी और बेहद गुस्से में भर गयी। उसे अपना पराया कुछ न सूझा उसने इस लड़के में जोर से उसकी पीठ में लात मारी जिसके कारण से वह अपने सामने की सीढ़ियों में गिर गया । चोट के कारण जगह जगह से उसके खून भी निकलने लगा। वह बडा अपमानित भी For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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