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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इडा पिघला और सुषमणा नाड़ियों का अस्तित्व तथा प्रभाव था अपनी मुर्खताओं पर । अपने ही दांतों के बीच में अपनी ही जीभ आ जाने के कारण से उसकी जीभ भी कट गई थी। थोड़ी देर में ही बेहोश हो गया, पता नहीं कितनी देर तक वह वहां ही पड़ा रहा उसी अवस्था में । लेकिन जब उसको होश आया तब वह लड़का जैसा दुर्घटना से पहले था, वैसा अब नहीं था । अब तो वास्तव में विद्वान हो चुका था और इतना भारी विद्वान हो गया था कि वही पत्नी अब उसके तलुवे चाटने लगी थी। कालान्तर में यही लड़का महाकवि कालिदास के नाम से इस सम्पूर्ण संसार में छा गया। आज भी उसके काव्य ग्रंथों को लेकर जाने कितने ही शोध के छात्र महाकवि कालिदास के नाम से पी० एच० टी० प्राप्त कर रहे हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि पीटर हारकौस आज इस संसार के समक्ष जीवित स्थिति में हैं और कालिदास का उदाहरण हमारे इस दुनियाँ में आने से पूर्व का है । लेकिन इस बात से क्या अन्तर पड़ता है। हमें तो ठीक से बहुत गहरे में उतर कर यह जानना हैं कि कुण्डलिनि जागरण के पश्चात आदमी कुछ अजूबा हो ही जाता है । वह चमत्कारिक रूप से कुछ दिनों में ही हम सबसे ऊपर निकल जाता है । ये दोनों प्रकार की घटनायें ऐसी उदाहरण हैं जिनमें कुन्डलिनी बिना किसी तपस्या बल्कि दुर्घटना वश जागृत हुयी है। पूर्व जन्म के संस्कारों के कारण से केवल मन को एक पतं इनके ऊपर से हटने को बची थी जो इनको इस दुर्घटना के कारण हट गयी और इस प्रकार से वह व्यक्ति एक दूसरे ही प्रकार का व्यक्ति हमारे सामने हमारे देखते देखते हो जाता है। हमारा आध्यात्म विज्ञान इसको पूर्ण रूप से मान्यता प्रदान करता है बिना किसी सोच संकोच के । इन सारी बातों को जानकर यदि हम यह सोचने लग जावें कि कुन्डलिनी जागरण के पश्चात हमारे ऊपर परमात्मा की विशेष कृपा हो जाती है अथवा हम में परमात्मा उतर कर झलकने लगता है। यह कुछ कुछ हमें ठीक लगते हुये भी गलत ही हैं क्योंकि अगर इस बात को बड़ी श्रद्धापूर्वक भी हम इसे इस तरह से समझते है तब भी गलत ही समझते हैं क्योंकि ऐसा सोचते ही हम उस परम सत्ता को अपने से दूसरा मान लेते हैं । जबकि हम स्वयं उसी महासागर को बूद हो तो हैं । यानि कि हम स्वयं ब्रहम ही तो हैं । जो गुण उस पार ब्रह्म परमात्मा के होते हैं । वे ही तमाम लेकिन छोटे रूप में ही सही इस शरीर के द्वारा परिलक्षित होते हमें हमारी कुन्डलिनी जागरण होकर सिद्ध अवस्था में पहुंचने के For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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