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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इडा पिघला और सुषमणा नाड़ियों का अस्तित्व तथा प्रभाव १६१ बोला, "राजकुमारी जी इन्होंने तो बहुत वहा था कि कहीं बहस करने से किसी के ज्ञान का पता चलता है। लगता है तुम्हारी राजकुमारी मूर्ख ही है इन्होंने तो मना ही कर दिया था, यहाँ आने को लेकिन हम ही इनको बड़ी मुश्किल से यहाँ मना कर लाए हैं वह भी इनकी एक शर्त पर कि मैं कुछ भी अपने मुह से नहीं बोलूगा । अगर आपकी राजकुमारी इतनी मेघा हैं तो उसे मुझसे मूक भाषा मे ही बातें करनी होंगी, यह हमारी शर्त है। अन्यथा हम बिना बात किये ही लौट आवेगे इसलिए राजकुमारी जी हमारी आपसे विनती है कि इनकी शर्त को स्वीकार करके अपनी विद्वता की छाप इनके ऊपर छोड़ दीजिए । राजकुमारी एक तो इस लड़के के रंग रूप को देखकर पहले से ही प्रभावित थी। इसके साथ-साथ राजकुमारी ने यह भी सोचा कि यह मुझे प्रतिद्वन्दिता के लिए ललकार रहा है ? इस प्रकार की हिम्मत तो आज तक किसी की नहीं हुई थी कि कोई उल्टा उसे ही ललकारे खैर उसने लड़के की शर्त जो दरबारियों ने उसे बतायी थी मानली। वह कोई गूगों की पढ़ाई जाने वाली भाषा की अध्यापक तो थी नहीं कि अनगिनत प्रश्न इस लड़के के खिलाफ खड़े कर सकती इसके अलावा यहाँ एक बात और थी कि उस राजदरबार में सभी दरबारीगण उस लड़की को पराजित या बेइज्जत हआ मन से चाहते थे क्योंकि इसने सभी की नाक में दम कर रखा था। प्रतियोगिता शुरू हुई। राजकुमारी की तरफ से पहला प्रश्न इशारे से किया गया जिसमें उसने लड़के की तरफ एक उगंली खड़ी की। इस मुर्ख लड़के ने सोचा कि यह मेरी आँख फोड़ने के लिए. मुझे एक उगंली दिखा रही है । इस बात को सोच कर इस लड़के को बड़ा गुस्सा आया कि यह मेरी एक आँख फोड़ेगी, मैं इसकी दोनों आँखों को ही 'फोड़ डालूंगा । इसने समझ क्या रखा है। इतना मन में विचार करके इस लड़के ने राजकुमारी की तरफ अपने हाथ की दो अंगुलियों को उसकी आँखों की तरफ कर दिया। वहाँ बैठे दरबारी तो पहले से ही संभावित प्रश्नों को करीब-करीब जानते ही थे। इसलिये लड़के के इस इशारे को राजकुमारी को समझाने दृष्टि में बोले, "देखा राजकुमारी जी । आपके प्रश्न का कितना सुन्दर एवं सटीक उत्तर आपको दिया है । आप ने पूछा था कि ईश्वर एक है, तो इन्होंने बताया कि ईश्वर एक नहीं दो हैं एक साकार दूसरा निराकार । इतना सुनकर राजकुमारी शर्म से लाल हो गई For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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