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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५८ योग और साधना कावी देखने को नहीं मिल सकती है । अगर दूसरे व्यक्ति में हमें मानसिक चेतन्यता के लक्षण देखने हैं तो उसका स्वरूप कुछ दूसरे ही प्रकार का ही होगा जैसे कोई मानित केवल आपकी आँखों में आंखें डालकर ही आपके भविष्य के बारे में बता देया दूसरा कोई स्वयं अपने मुंह से नहीं बतायेगा बल्कि आपको ही उस सूक्ष्म अवस्था में पहुंचा देगा जिसके कारण आप स्वयं अपने भविष्य का दर्शन अपने आप ही कर लेगें। जिस प्रकार बगीचे का माली एक ही तरीके और समान रूप से भी प्रस्येक पौधों को पानी देता है लेकिन प्रत्येक पौधे में एक जैसे रंग के तथा एक जैसे माकार के फूल नहीं खिलते । इसी प्रकार एक ही तरह की मानसिक चेतन्यता के माधार पर अलग-अलग व्यक्तियों में उसका प्रभाव भी अलग-अलग देखने को ही हमें मिलेगा। मैंने सुना है हिमालय में बद्रिकाश्रम के पास ही किसी गुफा में कोई बाबा रहते हैं। उनके पास इस संसार के किसी भी भाग का अथवा किसी भी भाषा को बोलने वाला व्यक्ति पहुँचता है तो उसकी भाषा को समझकर वे उससे बात करने लगते हैं । १५०० आश्चर्य नामक पुस्तक में इसका विवरण दिया हुआ है । हमारे भारतवर्ष का अध्यात्मिक इतिहास इस प्रकार की अनगिनत घटनाओं से भरा पड़ा है। मीरा को जब ज्ञान प्राप्त हो चुका था तब उसके पास उस समय का महान सम्राट अकबर और उसका महान संगीतज्ञ तानसन दोनों वेश बदलकर मीरा के सामने पहुंचे। उन्होंने मीरा की परीक्षा लेने के लिए ही तो अपना छद्म वेश बनाया था । वे मीरा की आँखों को तो धोखा दे सकते थे ? लेकिन क्या वे मीरा के मन की चेतन्यता को धोखा दे सकते थे? वही हुआ, मीरा ने दोनों को सिर के झुकाते ही पहिचान लिया । जिससे प्रभावित होकर ही वह दुश्मन की पत्नी के चरणों में गिर कर अपनी भेट जो वह अपने साथ लाया था, स्वीकार किये जाने की मीरा से मिन्नतें मांगने लगा । भगवान बुद्ध के पीछे उस समय का नर पिशाच अंगुलिमाल उनको मारने के लिये दौड़ा, जिसके डर से आदमियों के प्राण सूख जाते थे, लेकिन भगवान बुद्ध अपनी उसी मन्द-मन्द चाल से चलते रहे । अब बड़ी अजीब बात हुयी बुद्ध तो धीरे-धीरे बिलकुल सामान्य गति से चले जा रहे थे लेकिन, वह नर पिशाच अंगुलिमान उनके पीछे पूरी ताकत लगा कर दौड़ रहा था फिर भी भगवान बुद्ध उसके हाथ नहीं लग रहे थे । जब वह दौड़ते-दौड़ते बुरी तरह थक गया तब भगवान बुद्ध ने ठहरकर उसे अपनी चेतन्य शक्ति से ही उसके हृदय के कपाट खोल For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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