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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इडा पिंधला और सुषमणा नाड़ियों का अस्तित्व तथा प्रभाव १५७ यदि हम किसी तालाब के किनारे खड़े होकर पानी में एक बड़ा सा पत्थर जोर से डालें तो उस पत्थर के पानी में डालने के कारण से उस पानी में तरंगें या लहरे उठने लगती हैं जो एक किनारे से दूसरे किनारे तक बाद में पहुँचती भी दिखाई देती हैं । इस समय हमारे द्वारा पानी में डाला गया वह पत्थर समय के हिसाब से भूतकाल में है । तथा जिस समय हमने वह पत्थर पानी में डाला था। वह वर्तमान था उस पत्थर से उठने वाली लहरों का दूसरे किनारे से टकराना भविष्य कहलावेगा। इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे सामने जो भी कर्म होता है, वह होता तो काल की वर्तमान अवस्था में है। लेकिन उस कर्म का भूत एवं भविष्य से भी सूक्ष्म रूप की अवस्था में अवश्य ही सम्बन्ध होता ही है। यदि आज इस दुनियाँ में हम मौजूद हैं तो निश्चित रूप से भूत में वह स्रोत जहाँ से हम. यहाँ तक आये हैं भले ही सूक्ष्म अवस्था में ही सही लेकिन होना ही चाहिये। ठीक इसी प्रकार हमारे आज वर्तमान में रहने के कारण ही भविष्य के गर्भ में हमारा स्वस्थ क्या होगा सूक्ष्म रूप में इस समय भी विद्यमान रहना ही चाहिये लेकिन सूक्ष्म अप्रकट रहता है जबकि स्थूल प्रकट । ध्वनि की तंरगें एक बार इस संसार में उठने के पश्चात समाप्त नहीं होती बल्कि वह इस ब्रह्माण्ड के किसी न किसी कोने में हमेशा रहती हैं। लेकिन क्योंकि वे समय की वर्तमान अवस्था में नहीं हैं इसलिये उनका सुनाई देना हमें असंभव है क्योंकि अब इतने समय बाद उसका स्वरूप अब स्थूल न होकर सूक्ष्म हो जाता है और सीधी सी बात है स्थूल, स्थूल को जान सकता है और सूक्ष्म, सूक्ष्म को । इस संदर्भ में यहाँ समझने की बात यह है कि हमारा मस्तिष्क तो स्थूल है लेकिन हमारा मन का स्वरूप सूक्ष्म है। और प्रत्येक भूतकाल तथा भविष्य काल सूक्ष्म अवस्था में ही होते हैं, इसी कारण से जो लोग भविष्य वक्ता होते हैं उनके मन सुषप्त अवस्था में नहीं बल्कि जाग्रत अवस्था में होता है जिसके कारण उनको चमत्कार करना असंभव नहीं होता है। एक बात इसी संदर्भ में अवश्य ही ध्यान रखने योग्य है, मन की शक्तियां असंख्य प्रकार की होती हैं इसलिये अनन्य व्यक्तियों में अपनी मानसिक क्षमता के अनुसार ही अनन्य प्रकार से उनके मन के चेतन्य होने के लक्षण दिखाई पड़ते हैं इसलिये ध्यान रखना, इस दुनिया में पीटर हारकोस की बिलकुल हूबहू दूसरी For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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