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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५६ जायेंगे । www.kobatirth.org योग और साधना Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मैंने पूर्व में लिखा है कि कुण्डलिनी शक्ति की इस शरीर में एक निश्चित जगह है। वहाँ से ही वह शक्ति इड़ा पिघला नाड़ियों के द्वारा हमारे शरीर में प्रवाहित होकर हमारे शरीर को जीवित रखती है। इस प्रकार की अवस्था इस कुण्डलिनी की सुषप्त अवस्था कहलाती है क्योंकि अभी तक इसने केवल स्थूल शरीर को ही जीवित बनाए रखने के लिए अपनी शक्ति लगा रखी है जो कि इसकी साधारण अवस्था है । लेकिन यही कुण्डलिनी शक्ति जब इडा पिंगला से निकलकर तीसरी सुषमणा नाड़ी में प्रवेश कर जाती है तब वह हमें हमारे सूक्ष्म शरीर को जिसका पहले हमें पता ही नहीं चलता था उसको हमारे अनुभव में लाकर साक्षात् कर देती है, हम वहाँ उस सूक्ष्म जगत में मस्तिष्क के स्तर पर नहीं बल्कि मन के स्तर पर अपने अस्तित्व में रहते हैं । उस समय पहली बार हम मस्तिष्क से अलग हटकर अनुभव करते हैं क्योंकि मस्तिष्क तो इस स्थूल शरीर के साथ ही इडा पिघला में से प्राणों के निकलते हो frष्प्राण हो जाता है । इसके उपरान्त हमारे पास मन हो तो बचता है। इस अनुभव से पहले हम मन की बातों को भी मस्तिष्क को ही क्षमता के अन्दर समझते थे । जब यही अनुभव ठीक-ठीक और प्रवेश की स्थिति को ही संसार में । मुज़सिक रूप से होने लगता है । तब इस सूक्ष्म हम कुण्डलिनी जागरण की अवस्था कहते हैं चूंकि मस्तिष्क की अपेक्षा हमारा मन ज्यादा क्रियाशील है तथा उसकी पहुँच स्थूल और सूक्ष्म जगत दोनों में समान रूप से होती है । इसी कारण की वजह से साधक सूक्ष्म जगत के रहस्यों को इस स्थूल जगत में उनके प्रकट होने से पहले ही अपनी कुण्डलिनी शक्ति के द्वारा जान लेता है और जैसे-जैसे उसका अभ्यास सिद्ध अवस्था में पहुँचता जाता है उसको ये सारे कार्य-कलाप खेल के समान लगते हैं । साधक की दर्शी की अवस्था कहते हैं । इतना सारा जान लेने के पश्चात ही हम पीटर हार कौस के चमत्कारिक रूप में भविष्यता होने के कारण को जान सकेंगे कि वह किस प्रकार से भूतकाल की जो गुजर गयीं हैं और जो आगे भविष्य में हमारे सामने आने वाली बातों को बता देता है । अब यहां यह शंका उठती है कि हम यह किस प्रकार मानें कि आज जो हमारे सामने घटित हो रहा है वर्तमान में, उसका पिछले भूत-hari अथवा भविष्य में होने वाली घटनाओं से कोई अर्न्त सम्बन्ध है | इसी अवस्था को हम त्रिकाल For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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