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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir set fireer और सुषमणा नाड़ियों का अस्तित्व तथा प्रभाव १.५५ आपने अपने लड़के को सब जगह, गली, मोहल्लों में ढूंढा लेकिन सर्कस में नहीं ढूंढ़ा। मैं उस लड़के को घोड़े की सवारी करते हुए देख रहा हूँ । लड़के के मातापिता को उसी दिन, अपना लड़का घोड़े के करतब दिखाते हुए उसी सर्कस में मिल गया । इस सम्पूर्ण संसार में इस शताब्दी का सबसे ज्यादा सही भविष्यवाणी करने वाला कोई व्यक्ति यदि है तो उसका नाम है पीटर हारकोस । अन्य सभी इससे नीचे हैं। वह कोई खास पढ़ा लिखा भी नहीं है । कहीं उसने किसी सिद्ध पुरुष के पास बैठकर तपस्या भी नहीं की है। फिर ऐसा क्या कारण है ? जिसकी वजह से उसमें इस प्रकार की चमत्कारिक शक्ति आ गयी, मात्र अपना सिर तुड़वाने के बाद । वह अपने आपको अपनी इस नई जिन्दगी में कितनी ही बार इस संसार के जाने माने शरीर विज्ञानियों के सामने प्रस्तुत कर चुका है। लेकिन कोई भी यह नहीं जान सका कि उसके दिखायी देने वाले दृश्यों का रहस्य क्या है । उनके लिए जैसे यह पहेली पूर्व में थी उनके बाद का निष्कर्ष भी उन्हें वही अनबूझ पहली के रूप में ही रहा । विज्ञान के पास इस बात को समझने का आधार अभी नहीं है। कौन जानता है, वह उसे कब मिलेगा ? लेकिन मिलेगा अवश्य ही । क्योंकि विज्ञान खोज में लगा है वह पहुँचेगा अवश्य ही क्योंकि अब जो समय इस काल में विज्ञान का चल रहा है । वह भी निश्चित रूप से अच्छा समय है क्योंकि वे अपने दूसरे विज्ञानियों द्वारा पूर्व में की गलतियों को सुधारने में संकोच नहीं कर रहे हैं । लेकिन आध्यात्म के पास पीटर हारकोस की स्थिति का जबाव सदियों पहले से रहा है । कुण्डलिनी जागरण के रूप में । कुण्डलिनी की जागृति अवस्था कौन सी है और सुषप्ती की कौन सी है ? यहाँ इस बात पर हम गौर करेंगे कि किस प्रकार से कुण्डलिनी जागृत होती है अथवा इसको जागरण करने में क्या क्रिया प्रक्रिया हमें अपनानी पड़ती हैं । यदि हम कुण्डलिनी जागरण की सारी व्यवस्था एवं बाद में करेंगे तब ही हमें पीटर हारकोस की स्थिति ठीक प्रकार से समझ आयेगी, अन्यथा हम भी पीटर हारकौस को जादुई इन्सान की पदवी देकर ना समझी में ही रह उसके फलितों पर विचार For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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