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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इडा पिघला और सुषमणा नाड़ियों का अस्तित्व तथा प्रभाव १५६ दिये जिसके कारण ही वह मानव जाति का खूखार हत्यारा जो अभी थोड़ी देर पहले वृद्ध को जान से मारने के लिये ही तो आया था बुद्ध से दृष्टि मिलते ही उनके चरणों में बैठकर दया की भीख मांगने लगा। महर्षि अरविद ने अपनी चेतन्य शक्ति के द्वारा ही भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान अपने शत्रु पक्ष के वर अंग्रेज अफसर को अपना भक्त बना लिया था और न जाने कितने ही असंख्य उदा. हरण हमारी इस भारत की मिट्टी में आपको मिल जायेगें क्योंकि सारे संसार में भारत ही एक मात्र बह देश है जहाँ मानसिक वेतन्यता प्राप्त करने का क्रमबद्ध तरीका यहाँ को हिन्दू संस्कृति में विद्यमान है। यहाँ आपको यह शंका उत्पन्न होगी कि पीटर हारकोस को तो वह मानसिक चेतना की शक्ति एक दुर्घटना के कारण मिली थी न कि किसी तथाकथित क्रमबद्ध साधना करने के पश्चात्, फिर इन बहुत से उदाहरणों से पीटर की स्थिति का सामंजस्य किस प्रकार से बैठता है ? इस शंका का निवारण करने के लिए मैं आपके समक्ष महाकवि कालिदास का उदाहरण देना चाहूँगा । जिनको उस चेतन्यता के मिलने के पहले पीटर हारकोस जैसी ही दुर्घटना का शिकार अपनी पत्नी के क्रोध के कारण बनना पड़ा था। हमारे भारतवर्ष में ही एक रजवाड़े की राजकुमारी अपूर्व सुन्दरी तो थी ही साथ ही साथ वह अद्वितीय विद्वान भी थी। उसने अपनी विद्वता से अपने राज्य के दरबारियों को तो हरा ही रखा था। आस पास के क्षेत्र में भी उसकी टक्कर का कोई भी पुरुष नहीं था। इससे भी ऊपर एक आफत और थी अपने पिता के सामने इस राजकुमारी ने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि जो मुझे ज्ञान में हरा देगा मैं उसी पुरुष से विवाह करूंगी अन्यथा किसी मुर्ख से विवाह करने की अपेक्षा कुवारी ही रहना ज्यादा पसन्द करूंगी। बार-बार राजा अपने दरबारियों को इस राजकुमारी के लिए किसी योग्य वर की तलाश में भेजता लेकिन हर बार आगन्तुक उम्मीदवार लड़की के हाथों पराजित होकर चला जाता । जिस कारण से अच्छे घरानों के यहां से उसके लिये उम्मीदवार मिलने भी बन्द हो गये थे। क्योंकि कोई भी अपनी वेइज्जती, अपनी होने वाली पत्नी से नहीं कराना चाहता था। इस कारण से दरबारी इस लड़की की हठधर्मी से बड़े भारी परेशान थे लेकिन राजा के हुकुम को मानकर बार-बार For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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