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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४० योग और साधना चीज से नहीं भरता है । यह केवल आकाश तत्व से ही भरता है । इस प्रकार पैदा हुआ परम निर्वात इस प्रकृति में से प्राणों की शक्ति को अपनी संरचना की क्षमता के अनुसार अपने अन्दर खींचने की ताकत रखता है। यही कारण है कि जैसे ही शुक्र और डिम्ब मिलकर उस परम निर्वात को इस प्रकृति में पैदा करते हैं । पास में गुजरती प्रत्येक आत्मिक शक्ति (शरीर में आने के बाद जिसे हम कुण्डलिनी शक्ति के रूप में जानते हैं ।) आकाश तत्व को आधार बनाकर उस निर्वात में प्रवेश कर जाती है । इस प्रकार शुक्र और डिम्ब से बना प्रत्येक कोष अपने निर्वात के द्वारा उस आकाश तत्व को अपनी तरफ आकर्षित करके स्वयं पावर हाउस बन जाता है। लेकिन इस प्रकार के प्रथम कोष से जब अन्य कोष बनते हैं । वे स्वतन्त्र रूप से पावर हाउस नहीं होते बल्कि इस प्रथम कोष में से निकलने के कारण से उसके आधीन होकर रहते हैं। और यही कारण है, इन दूसरे कोषों को इस प्रकृति से शक्ति"""उस प्रथम कोष के द्वारा ही श्रृंखलाबद्ध होकर पहुँचती है । जैसे कहीं कोई नया स्कूल खोला गया। पहले वहाँ एक अध्यापक आया, बाद मैं आवश्यकतानुसार और अध्यापक वहाँ आते गये । सर्वप्रथम आने वाला अध्यापक चुकि सबसे पहले आया था । अपनी योग्यता के आधार पर स्कूल के केन्द्र में बैठकर प्रधानाध्यापक बन जाता है। इसी प्रकार इस शरीर के केन्द्र में बैठे हुये प्रथम कोष की ही अपनी क्षमता होती है कि वह स्वयं अंशी बनकर अपने में से और अंश पैदा करे। क्योंकि उसकी संरचना शुक्र और डिम्ब से हुई होती है जबकि अन्य इसके बाई प्राडक्ट होते हैं। इसी कारण से वह प्रथम होते हुए विशेष भी होता है। तब दूसरे अंश किस कारण से उस प्रथम कोष के अंशो स्वरूप को स्वीकार नहीं करेंगे। उनको तो उसका आदेश मानने को बाध्य होना ही पड़ेगा। इस प्रकार यह देह तो बनना शुरू हो जाती है लेकिन हमारा मन हमारे संस्कार और हमारी इच्छा शक्ति किस प्रकार इस देह से सम्बन्धित होते हैं । इस बात को समझने के लिये हमें फिर से आकाश तत्व को गहरे में जानना होगा। विज्ञान ने कुछ-कुछ इसको जाना है लेकिन दिशा भ्रमित है। वह इसी आकाशी तत्व के सहारे ही तो अपनी संचार व्यवस्था बनाये हुये है । इस संसार में हम उपग्रह छोड़ते हैं, उनसे सूचनायें लेते हैं, उन्हें प्रेषित भी करते हैं। क्या आधार बनाते हैं ? वहाँ तक उन्हें पहुँचाने को, क्या वायु को, किसी तार को जलधारा को या तापमान को ? नहीं इनमें से कोई आधार इतना सक्षम नहीं होता है । जो इस पृथ्वी For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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