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अध्याय १०
जीव की संरचना
अब हम इस बात पर गौर करेगें कि वह कुन्डलिनि शक्ति हमारे शरीर में कहाँ से, किस रूप में तथा किस तरह से आकर विराज गई है। हमारा शरीर पांच तत्वों से बना है जिनमें जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी और आकाश तत्व शामिल हैं । इन पांचों तत्वों में से चार तत्वों को तो हम अपनी बुद्धि से भी जानते हैं। जैसे हमारे शरीर के खून में जितना भी द्रव्य रूप है वह जल ही है। हमारा तापमान जो सदा एक जैसा कन्ट्रोल होता रहता है वह अग्नि है । वायु या प्राण वायु को हम निरन्तर उपयोग में लाते हैं । पृथ्वी तत्व का अर्थ है ठोस रूप। वह हमारे शरीर का यह भाग है जिसमें मांस, अस्थि आदि आती है लेकिन पांचवाँ तत्व जब तक इनमें नहीं मिल जाता तब तक इस शरीर का चक्र पूरा नहीं होता। क्योंकि जब तक आकाश तत्व के रूप में प्राण ही नहीं होंगे तो इस शरीर में मारा सामान रहते हुये भी वे स्थूल तत्व स्वतः ही मिट जायेंगे।
जैसे मृत व्यक्ति का तापमान एकदम तो गिर नहीं जाता उसमें भी घण्टे दो “घण्टे लग ही जाते हैं । हाड़ मांस तो सब रहते ही हैं जल भी कहीं उड़ नहीं जाता, रही बात वायु की उसको भी कृत्रिम रूप से लगातार दिये रह सकते हैं। फिर क्या कारण है कि तुरन्त मृत हुये व्यक्ति के शरीर की आन्तरिक क्रियायें भी तुरन्त ही बन्द हो जाती हैं । इसका कारण है वह पांचवां आकाश तत्व । वह इस शरीर में -से निकल जाता है, जीवन और मृत्यु इसके द्वारा ही प्रभावित होते हैं।
दूसरे शब्दों में आकाश तत्व का आधार बनाकर हमारी आत्मिक-शक्ति ही कुन्डलिनी शक्ति के रूप में प्रकृति से बने ऐसे परम निर्वात में खिचकर आ जाती है जो कि प्रकृति में शुक्र और डिम्ब के आपस में समायोजन के पश्चात् उपस्थित होता है इस परम निति की यह विशेषता है कि वायु या अन्य किसी
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