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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३२ योग और साधना अन्तर नहीं है; डार्विन और हाइले की बातों में, क्योंकि न तो डार्विन ने ही कीचड़ से आदमी पैदा करके दिखाया था और न ही हाइले ही ब्रह्माण्ड के किसी नक्षत्र से मानव को उतारकर दिखा रहे हैं। दोनों ने ही बुद्धि, कल्पना और अपनी वैज्ञानिक क्षमताओं का ही उपयोग करके अपना सिद्धान्त प्रतिपादित किया और दोनों ही तथ्यों से परे रहे हैं आज भी । सभी ने मानव की उत्पत्ति या प्रकृति में जीव की उत्पत्ति को जानने के लिए इस मानव देह से बाहरी तथ्यों पर अपना समय खर्च किया है, उन्होंने सोचा है कि कहीं न कहीं कीचड़ में अथवा ब्रह्माण्ड में इसका कारण होना ही चाहिए। जबकि हमारे ऋषियों ने, हमारी देश की संस्कृति के शिक्षकों ने हमें स्वयं पर जोर देने के लिए कहा है । उन्होंने हमेशा कहा कि यदि तुम इस प्रकृति के ज्ञान के बारे में जानना चाहते हो तो उसे बाहर मत खोजना नहीं तो तुम्हें भ्रम के अलावा कुछ नहीं प्राप्त होगा। यदि तुम्हें प्रकृति के द्वार पर दस्तक देनी है या प्रकृति के ज्ञान के कपाट तुम्हें खोलने हैं तो तुम स्वयं से हो उस यात्रा को शुरू करना । क्योंकि तुम स्वयं भी तो प्रकृति के एक अंश ही हो और जितना ज्यादा अच्छी तरह से प्रयोग तुम अपने ऊपर कर सकते हो, दूसरे के ऊपर प्रयोग करने का कोई भी तरीका तुम्हारे पास कहाँ है ? लेकिन बुद्धिवादी लोग यह कहते हैं सिर तो हम किसी दूसरे का मूड़ें और सीख जायें हम । हमेशा बुद्धि हमें अनुभव करने से बचाती है। क्योंकि सबसे ज्यादा कठिनाई अनुभव के दौरान उसको ही झेलनी पड़ती है। हम कोई नया काम शुरू करते हैं तो हमें उस योजना पर हजारों बार सोचना पड़ता है। बड़ी रिस्क उठानी पड़ती है, बड़ी तैयारी करनी पड़ती है, तब भी क्या भरोसा कि हम सफल होंगे ही । केवल इसी झंझट की वजह से ही बुद्धि हमें हमेशा बचाती रहती है । जहाँ हम हैं ठीक हैं । खूब खाना मिल रहा है । खूब मजे हो रहे हैं । क्या जरूरी है कि बेकार में हम अपने जीवन का समय बर्बाद करें । लेकिन जो खोजी पुरुष होते हैं वे कुछ और तरह के होते हैं जिन्हें कुछ करना होता है वे इन सवालों को व्यर्थ का बोझ मानकर ऐसे उतारकर रख देते हैं जिस प्रकार सम्राट रात्रि को सोते समय अपने मुकुट को उतारकर रख देता है । इसलिए हमें अपने अस्तित्व के श्रोत को यदि जानना है तो व्यर्थ के प्रश्नों के बोझ से अपने मस्तिष्क की शक्ति को व्यय होने से बचाना होगा, जो विचार हमें For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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