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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्याय ६ कुण्डलिनी का स्थान बहुत से व्यक्तियों में एक प्रकार की बीमारी रहती है जिसमें वे अपनी बुद्धि कौशल से प्रत्येक अच्छी या बुरी बात को काट करना अपना अधिकार समझते हैं । परन्तु क्यों चाहते हैं, वे ऐसा ? इस बात का तो स्वयं उनको भी पता नहीं रहता, यह सच है कि बुद्धि तक की बातों से तो वे पूर्णतया परिचित अच्छी तरह से रहते हैं । परन्तु बुद्धि से बाहर की बातों को जब उनके समक्ष रखा जाता है तो उनमें बात की गहराई तक समझने की अपेक्षा अपना फैसला देने की तत्परता ज्यादा रहती है और कहते हैं-ये सब मिथ्याभ्रम की बातें हैं बिना बुद्धि के कुछ भी नहीं हो सकता । इस प्रकार के बुद्धि जीवी उस बात को तो मान्यता प्रदान करते हैं। जिसको इस संसार के गिनती के दस बीस वैज्ञानिकों ने ही जाना है। लेकिन ये लोग उस कथन की पुष्टि करने को तैयार नहीं होते, जिसको संसार के लाखों व्यक्तियों ने स्वयं अपने अनुभव से ही जाना है। वैज्ञानिक डार्विन ने एक बात अपनी समझ से जानकर कि मनुष्य बन्दर की सन्तति है अथवा सूर्य से पृथ्वी के अलग होकर ठण्डा होने के बाद(सूक्ष्म एवं कोशिकी माइक्रोस्कोपिक जीवों से हुई) वर्षा से उत्पन्न कीचड़ में से आदमी पनपा है; यह कहकर इस मंसार को पूरी एक शताब्दी तक भ्रम में डाले रखा। लेकिन आज सर फ्रेह हाइले ने डार्विन के मनुष्य की उत्पत्ति के सिद्धान्त की रूपरेखा ही बदल दी है। उनका तो यहाँ तक कहना मेरे अनुसार यह सिद्धान्त ज्यों का त्यों कायम ही नहीं है । वे कहते हैं कि मनुष्य जैसा जीव एवं अद्भुत क्षमताओं वाला प्राणी ब्रह्माण्ड के किसी अन्य नक्षत्र से ही इस पृथ्वी पर उतरा है । और यहाँ आकर उसने अपनी वंश बृद्धि की है । पहले ये वुद्धि की बीमारी से ग्रस्त लोग डार्विन को मानते रहे थे, अब ये ही बीमार सर फेह हाइले की बातों को मानने लग जावेंगे । कुछ बहुत ज्यादा For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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