SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३० योग और साधना साधक इसी मानसिक शक्ति को अपनी बुद्धि के विकास में लगा देता है फिर तो उसके मुंह से जैसे साक्षात मां सरस्वती ही बोलती है । जैसे विवेकानन्द, रजनीश । कोई अन्य इसका उपयोग अपनी तपस्या में ही लगा देते हैं जिसके द्वारा वह और ज्यादा कठिन तप करने के लिए अपने आहार के संयम पर इतनी क्षमता बढ़ा लेता है कि वहाँ तमाम शारीरिक विज्ञान फेल हो जाता है कि तमाम शरीर जिन्दा रहने के खिलाफ है फिर भी प्राण कहाँ अटके रह जाते हैं ऐसे कई एक अवसर गाँधीजी के जीवन में आए हैं । विनोबा ने भी इसी प्रक्रिया को भली-भांति परखा था । कुछ लोग अपनी मानसिक क्षमता बढ़ाते हैं जो एक जगह ही बैठे-बैठे अपने विचारों को टैलीपैथी के द्वारा अपने इच्छित व्यक्ति के पास भेज देने की क्षमता रखते हैं इस प्रकार के कितने ही सन्त हमारी संस्कृति की कथाओं में मौजूद हैं तथा आज भी यदा कदा प्रत्यक्ष दशियों द्वारा ऐसे व्यक्तियों से मिलन होना बताया जाता है कि फलां सन्यासी के पास पहुँचने पर उसने हमारा नाम गाँव आने का प्रयोजन एक प्रकार से हमारे मन को पढ़कर ही बता दिया । कुछ लोग अपनी आँखों के रास्ते से आपकी चेतना को प्रभावित करने की क्षमता जागृत कर लेते हैं और अपने सामने वाले व्यक्ति की आँखों में आँखें डालकर ही उसे अपने इच्छानुसार प्रभावित कर देते हैं अथवा सम्मोहित कर देते हैं । ये सब सिद्धियों के अनन्य रूप हैं जो हमें अपनी लगन, मेहनत और तपन से प्राप्त होती है। For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy