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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुण्डलिनी का स्थान १३३ रास्ते पर यात्रा शुरू करते समय हतोत्साहित करें उन्हें वे जिस प्रकार आपके मस्तिष्क में आयें उसी प्रकार उनको गौर पूर्वक ध्यान देकर देखें और अपने मानस पटल पर से तिरोहित हो जाने दें। विचारों से छुट्टी पा जाने का सर्वोत्तम साधन यदि कोई इस दुनियाँ में है तो वह है "ध्यान" ! ___ध्यान की अवस्था में हम अपने आपको विचार शून्य पाते हैं । लगनपूर्वक ध्यान का केवल साल छः महीने अभ्यास करने के पश्चात् ही हम जान जाते हैं कि ध्यान ही वह साधना है जिसके द्वारा हम अपने मस्तिष्क पर नियन्त्रण प्राप्त कर सकते हैं । अब तक हम अपने मस्तिष्क को ही इस देह का संचालक मानते रहे हैं। जबकि ध्यान सिद्ध करने के पश्चात् हम अपने मन को अपने ऊपर संचालित करते हुए पाते हैं । तब ही इस बात को ठीक से जान पाते हैं कि बुद्धि और मन दो अलग अलग चीजें हैं तभी हम इस बात से भी परिचित होते हैं कि बुद्धि कुछ अलग ही कहती है हमसे और मन हमें और कहीं ले जाना चाहता है। बुद्धि के द्वारा हम अपने शरीर को लेकर बैठते हैं अपने कमरे में ध्यान करने को लेकिन मन के द्वारा हम स्वयं पहुँच जाते हैं हजारों मील दूर। वहीं के दृष्य से हम अपना इस कदर सामंजस्य बैठा लेते हैं कि यह भूलना भी कठिन हो जाता है कि हम अभी थोड़ी देर पहले उस स्थान पर नहीं थे। लेकिन इस कल्पना की शक्ति को या इन मानसिक शाक्तियों को हमारा विज्ञान मस्तिष्क की ही शक्तियाँ मानता है। इसी बात का सहारा लेकर बुद्धिजीवी अपने अहम् में रह जाते हैं और मन की शक्तियों को भी बुद्धि की शक्तियाँ ही मान लेने की गलतियाँ कर जाते हैं । चूंकि उनके मस्तिष्क के द्वारा कोई चमत्कार उन स्वयं को नहीं होता है इसलिए दूसरे अनपढ़-गंवार बाबाजी अथवा सन्यासियों के द्वारा कथित चमत्कारों को ये लोग अन्धविश्वास, ढौंग या धोखा'धड़ी की उपमा देते हैं, और हम सभी देखते हैं, इस वैज्ञानिक युग में भी आध्यात्म की शक्ति का प्रचार कम नहीं बल्कि ज्यादा ही हुआ है । इस विशय में रुचि अब हमारे देश के ही नहीं, सारे संसार के पढ़े लिखे विद्वानों में (बीसवी सदी जिसको हम वैज्ञानिक सदी के रूप में जानते हैं। जिसका आधार अनन्य महान वैज्ञानिक हैं) शुरू हो चुकी हैं। जितना-जितना भारतीय दर्शन पर आघात किया गया उतना-उतना ही यह दर्शन सर्वमान्य होता गया है । अगर फिर भी कोई कमी दिखाई देती है तो वह है For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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