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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar साधन से सिद्धियों की प्राप्ति १२१ पलायन कर जाते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि दोपहर के दो बजे से लेकर चार बजने तक का समय मेरे लिये सबसे कष्ट कारक समय रहा और वह कष्ट पूर्ण समय जिसके द्वारा मैं, मेरे शरीर की प्रत्येक हरकत के प्रति ही नहीं बल्कि मन की प्रत्येक विचारणा, प्रत्येक आशंका एवं मन की चपलताओं के प्रति होशपूर्वक उनका साक्षात्कार कर रहा था और उनसे केवल इस प्रकार की कठिन परिस्थि'तियों में हो सामना किया जा सकता है। तपश्चर्या का महत्व और उसका हमारे मन पर पड़ने वाला प्रभाव, उसी दिन ठीक से समझ में आया कि क्यों हमारे योगियों ने, मुनियों ने अभाव का रास्ता चुना ? क्योंकि अभाव के रास्ते को तपश्चर्या को साधते-साधते "जीवन" के अभाव को भी हम साधने को तैयार हो जाते हैं। जैसे तैसे चार बजे और समय काटने की गरज से तीन-चार दिन की बढ़ी हुई दाढ़ी काटने के बाद शीशे में जब पहली बार शक्ल देखी तो चेहरा काफी अन्दर धंसा हुआ सा तो लगा लेकिन किसी भविष्य के आशा ने मन पर उस समय लीपा-पोती कर दी। अव मैंने इशारों से बाबू लाल को बाल्टी लेने के लिये कहा और गंगा स्नान के लिये, कमरे से बाहर निकला और नीचे उतर कर बाजार में 'पंचामृत बनाने के लिये सामान खरीदा और लिखकर वाबू लाल' को बताया कि दो 'जगह खाना ले ले दोंने में मिठाई पूड़ी साग अचार सब कुछ होना चाहिये । दूध-दही शहद, घी को बाल्टी में डालकर गंगा जी पर चल दिया। पंचामृत का पांचवा भाग गंगाजल छान कर वहां डालना था। जब मैं और बाबू लाल गंगा घाट पर पहुंचे। घाट पर कोई पांच सात आदमी ही होंगे । कोई भजन कर रहा था, कोई स्नान कर रहा था, कोई-कोई बैठे-बंटे गंगाजी को देखकर आनन्द मग्न हो रहा था। धारा से चार पाच सीढ़ी ऊपर मैंने अपना सामान रख दिया। सामान के पास बाबू लाल बैठ गया । मैं धारा मैं उतर कर गोता लगाने लगा । जब दो-तीन डुबकी लगा ली तब बाबू लाल ने कहा, "धारा में वेग अधिक है। ऊपर आ जाओ ।" मैंने भी यही उचित •समझा । ऊपर आकर मैंने अपने कपड़ों पर, वधुआ पर तथा सभी सामान पर पवित्र करने के उद्देश्य से गंगा जल के छीटे मारे, तत्पश्चात् पंचामृत तैयार करके गंगाजी के नाम पर परोसा लेकर उसमें एक रुपया रखकर और थोड़ा सा पंचामृत डालकर धारा के जल में खड़े होकर महारानी गंगे For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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