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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२२ योग और साधना का नाम लिया और धीरे से धारा में छोड़ दिया वह थोड़ी दूर कोई एक डेढ़ मीटर तक तैरा और बाद में डूब गया । लेकिन थोड़ी देर बाद ही पत्ते की पत्तल जिसमें यह सामान रखा हुआ था ऊपर तैर आयी और जल के तीव्र वेग के साथ बह गयी। इसमें तो कोई खास बाते नहीं थी। क्योंकि बजन होने के कारण से पहले तो डूब गयी । बाद में बजन नीचे पानी में रह गया तो हल्की पत्तल ऊपर तैर कर बह गई । मेरे दिल की थड़कनें शायद कुछ तेज हो गई थी क्योंकि अब ही वह समय या जब मुझे किसी प्रकार से, ताऊजी की तरफ से कोई संकेत मिल सकता था। खैर मैं फिर ऊपर सीढ़ियों पर आया दूसरी पत्तल में रखा सामान उठाया । एक रुपया का सिक्का रखा, थोड़ा सा पंचामत डाल कर सीढ़ियां उतरने लगा। इस सारे के सारे कार्यक्रम को वहां उपस्थित लोग कौतुहल से देख रहे थे क्योंकि अभी तक मैं मौन था और बबुआ से मैं केवल जरूरत भर के इशारों से काम चला रहा था। देखने में मैं कोई बाबा टाइप अथवा साधु-सन्यासी टाइप भी नहीं लग रहा था इसलिए अन्य लोगों का मेरे उस समय के क्रिया कलापों में अनायास ही उत्कष्ठा जाग जाना कोई विशेष बात नहीं थी। दूसरे परोसा के सामान को लेकर कमरकमर जल में पहुंचा । जिस प्रकार से भी ताऊजी के चित्र अथवा स्मरण मैं अपने मन में ला सका लाया । एक क्षण को मन में ही कहा यदि आपने वास्तव में मुझसे यह सब कुछ चाहा है तो मुझे भी संतुष्ट ही रखना, इतना सोचकर मैंने ठीक पहले की तरह ही सारा सामान बहती तेज धारा में छोड़ दिया मेरे छोड़ने भर की देर थी कि "मेरे सामने कोई तीन फुट दूर- लगभग पांच फीट की लम्बाई में और दो फीट या डेढ़ फीट की चौड़ाई में पानी में एक गहरी दरार बनी और सारा सामान उसमें समा गया। मेरे पैरों के पास के पानी में कुछ भी बदलाव उस समय नहीं आया । न ही कोई डर व घबराहट मुझे लगी। बल्कि जैसा कि मेरे मन में विश्वास था, वह ही इस रूप में प्रकट हुआ था । उस स्थान पर खड़े-खड़े में तो उल्टे खुशी से झूम उठा था जबकि बगल में नहाने वाला एक अन्य व्यक्ति जैस-तैसे अपनी जान बचाकर सीढ़ियों की तरफ भागा था। बबुआ भी वहीं बैठा यह सारा का तमाशा देख रहा था । उसने तो गंगा महारानी की जय जोर-जोर से बोलना शुरू कर दिथा था अन्य लोगों का ध्यान भी इस घटना की तरफ हो गया था क्योंकि वह आदमी जो डर कर भागा था सबसे कह रहा था, "कितने ही महिनों से मैं यहां स्नान कर रहा है लेकिन किसी जन्तु को नहीं देखा और न महसूस किया, लेकिन For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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