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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० योग और साधना का रक्खा था। आज उसका आखिरी दिन है। केवल हाँ या ना में जबाब लिख दें।" जैसे ही मैंने पढ़ा। कितने सारे विचारों के ढेर में आकर मैं गिरा एक बार तो बाबू लाल ( बबुआ ) पर क्रोध भी आया क्योंकि जो स्थिति मेरी चल रही थी; वह व्यवधानित हो गई थी लेकिन ईश्वर की इच्छा मानकर मैंने इसको भी अंगीकार कर लिया और पलट कर दो वाक्य मैंने भी लिख दिये। पहला यह कि "आज निर्जला है" । दूसरा-- यात्रा के बारे में लिखा कि "ईश्वर की जैसी इच्छा"। बबुआ ने जो बद्रीनाथ की बात चलाई, उससे कुछ लगने लग गया था कि शायद पन्द्रह तारीख वाली बात सच हो जाये। खैर जो भी होगा देखा जायेगा। अब दो बातें मन में घूम रही थी। एक तो रात वाली घटना जिसके अन्तर्गत ताऊजी गंगा जी को परोसा समर्पित करते समय या उसके पहले किस प्रकार से मुझे चेटक देगे या अपनी उपस्थिति का विश्वास दिलायेंगे । दूसरी बात थी............ "पन्द्रह मुण्डा" । पन्द्रह तारीख को भरतपुर पहचना। लेकिन दोनों बातें भविष्य की थी। उनका वर्तमान से कोई सम्बन्ध नहीं था। इसलिये भविष्य की चिन्ता छोड़कर फिर से मैं अपने आपको संयत करने की कोशिश करने लगा लेकिन अब मन में यह निश्चित हो गया था कि आज शाम को ही खाना खाना है। इसलिये अब मन में यही बात धूमने लगी थी कब शाम होगी कब भोजन खाने को मिलेगा। कई बार तो ऐसे विचार भी मन में आये कि अब दोपहर और शाम में क्या फर्क है ? दिन तो तीसरा आ ही गया और प्रातः काल निकल ही गया है। अब तो चाहे अभी समाप्त कर दो अथवा शाम को। खाना तो एक बार ही खाना है फिर विचार आता है कि अब आखिरी परीक्षा की घड़ी पर अपना धैर्य नहीं छोड़ना चाहिये । यही तो समय है अपने आपको तपाने का। बहुत देर बाद जब घड़ी देखता तो बड़ा भारी आश्चर्य होता कि अभी पाँच मिनट ही गुजरे हैं। उसी दिन मालुम हुआ कि जब हम समय के प्रति जागृत रहते हैं तो वह क्षण कितने ज्यादा लम्बे होते हैं। उस थोड़े से समय में कितना ज्यादा काम हम कर सकते हैं जबकि बेहोशी में सारा जीवन यों ही निकल जाता है और हम कुछ भी नहीं कर पाते, रोते हुए इस संसार में आते हैं और पछताते हुए इस संसार से For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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