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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधन से सिद्धियों की प्राप्ति १०५ कुछ इसी प्रकार से ही उन दिनों घटा था क्योंकि अभी तक किसी सहायक का चयन नहीं हो सका था जो विश्वास पात्र तो हो ही तथा समझदार भी हो। इसके साथ साथ ऐसा भी हो जो मेरे मन के अनुरूप शिष्यवत् कार्य कर सके, और मुझे मेरी आवश्यकता के अनुरूप ही ऐसा एक व्यक्ति मिल भी गया। जिसकी स्वयं की पान की दुकान मेरी फोटो की दुकान से थोड़े ही फासले पर थी। इस प्रकरण में ही एक बात मेरे लिये और भी अच्छी थी एक तो यह कि विचारों से वह व्यक्ति उन दिनों मुझसे काफी प्रभावित हो गया था, जिसके कारण उसके मन में मेरे प्रति श्रद्धा उतान्न हो गयी थी। दूसरे उसकी मुझसे उम्र आठ या दस वर्ष अधिक थी। उसको इस ज्यादा उम्र का मुझे फायदा यह हुआ, जहां मैं ३२ साल का होते हुये भी बिलकूल आजकल के लड़कों की तरह फेशनेबुल लगता था वहीं वह एक गृहस्थ एवं जिम्मेदार पूर्ण व्यक्तित्व वाला नजर आता था; उसका नाम तो बाबू लाल है लेकिन वह यहाँ लक्ष्मण जी के मन्दिर के चौराहे पर बबुआ पान वाले के नाम से मशहूर है, खैर........ मन में अपने प्रोग्राम के प्रति उत्साह तो बहुत था लेकिन पूर्व का कुछ भी अनुभव नहीं होने के कारण से मन में कई प्रकार की धारणाएं स्थान का चयन करने के बारे में भी। कभी तो विचार आता कि कही किसी गुफा में शरण ली जाये अथवा कहीं खुले में ही बैठ लिया जाये । अन्त में हम दोनों ने विचार विमर्श के बाद दो बातें निश्चित की पहली तो यह कि स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी जी का एक आश्रम जो जम्मू कशमीर के मन्तलाई क्षेत्र में है, उनसे आज्ञा लेकर वहाँ के एकान्त वातावरण में किसी एकान्त स्थान पर बैठ कर अपना कार्यक्रम किया जाये, और यदि वहाँ पर अपनी साधना के करने के की अनुमति किसी कारण वश नहीं मिले तो फिर दूसरी व्यवस्था के अनुसार ऋषिकेश पहुँचकर किसी धर्मशाला में कमरा लेकर रहें। जिस उत्साह से प्रोग्राम को क्रियान्वित करने के लिये योजना चल रही थी उसी तीब्र गति से ही मेरी अर्थिक समस्या भी सुलझ गयी। हम दोनों के ऊपर आने, जाने, खाने, पीने एवं रहने के लिए कम से कम एक हजार रुपये चाहिये ही थे । बबुआ से तो इस बारे में मैं कुछ ही नहीं कह सकता था क्योंकि एक तो वह स्वयं ही आर्थिक रूप से तंग था दूसरे उसकी मेरे ऊपर इतनी कृपा ही काफी थी For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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