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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १०६ योग और साधना कि वह अपनी दुकान और बच्चों को छोड़कर बिना अपने किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए निस्वार्थ भाव से मेरे साथ चलने को राजी हो गया था । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस प्रकार से पूर्ण तैयारी करने के बाद हम आठ मई सन् १९८१ को सुबह प्रोग्राम के अनुसार, हमें एक योग की कक्षायें चलाने । 'पाँच बजे भरतपुर से दिल्ली को बस से रवाना हुये । बार अर्पणा आश्रम जहाँ कि स्वामी धीरेन्द्र जी ब्रह्मचारी के लिये आश्रम बनवा रहे थे वहाँ रुककर उनसे उनके मन्ता लाई वाले अर्पणा आश्रम में रहने के लिये आज्ञा लेनी थी। लेकिन उनसे मिलने के बारे में मन में बड़ी अस्पष्ट सी कशमकश थी कि वे इतने बड़े प्रभुता सम्पन्न व्यक्तित्व के मालिक हैं जिसके कारण उनसे मिलना हमारा इस महानगरी में किस प्रकार से हो सकेगा ! ईश्वर के ऊपर अपने कार्य का भार डालकर मन को सन्तोष दिया कि जो कुछ भी होगा वह ठीक ही होगा । वस के आश्रम के चौराहे पर पहुँचते ही हम अपने सामान - सहित वहाँ उतर गये । सामान को बबुआ के पास छोड़कर मैं आश्रम के अन्दर गया वह पूछने पर किसी व्यक्ति ने बताया कि स्वामी जी अभी-अभी ही यहां आये हैं, वहाँ जाकर मिल लो, यदि यहाँ से चले गये तो फिर कहाँ और कब मिलेंगे कुछ भी कहना मुश्किल है वैसे भी वे यहाँ तो महीने में एकाध बार ही आते हैं। मैं थोड़ा आश्चर्य चकित हुआ परमात्मा की अनुकम्पा के ऊपर । एक मिनट बाद ही मैं स्वामी जी के समक्ष पहुँच गया । उनके चरण स्पर्श करने के बाद मैंने अपने मिलने का प्रयोजन बताते हुये उनसे कहा कि "मैं तीन दिन तक मौन रहकर केवल छाछ के ऊपर आधारित रहकर आपके मन्तालाई वाले आश्रम के एकान्त में अपनी साधना करना चाहता हूँ इसलिये मैं आपसे वहाँ रहने दिये जाने की आज्ञा पाने की स्वीकृति चाहता हूँ ।" इतना सुनकर ही वह बोले, "वहाँ पर ही क्यों जाना चाहते हो, हरिद्वार चले जाओ ।" इस पर मैंने उनसे कहा कि, "मुझे खुले मैं आग लगाकर बैठना है और चूँकि मैं अपने आप में बाबा सदृश्य नहीं लगता है। इसलिये कहीं कोई धोखा समझकर मेरी साधना में व्यवधान ही पैदा न कर दें । इसलिये आपके आश्रम का क्षेत्र मैंने चुना है ।" For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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