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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०४ योग और साधना इसलिये उस समय साधना करने से पहले उसके परिणाम के लिये उत्सुक अपने विचारों को त्याग देना ही श्रेयष्कर समझा, लेकिन फिर भी साधन या प्रक्रिया के प्रकार के वारे में निश्चय करना अभी शेष था। इस आखिरी वात को निश्चत करने से पहले स्वयं मुझे बड़ी कठिनाई हुई लेकिन बाद में बिना किसी विशेष उलझन में पड़े मैंने इस शृंखला में आये कितने ही विचारों में से एक विचार को हो ज्यादा महत्व देना उचित समझा, जिसके अर्न्तगत एक ही बात मुख्य थी कि मैं वहाँ अपनी साधना स्थली पर उस तरह का ही वातावरण तैयार करके रखू जैसे कि हमारे योगी, मुनि अनादि काल से अपने पास रखते आ रहे हैं। जिससे कि मैं उस तथाकथित वातावरण में ज्यादा समय तक अपने आपको स्थिर रख कर चूंकि मेरे जीवन में इस प्रकार की साधना का अवसर पहली बार ही उपस्थित होना था इसलिये मैंने सोचा कि तीन दिन का समय ही पहले पहल काफी रहेगा । इन तीन दिनों में शुरू से अन्त तक तुझे मौन ही रहना था और वह मौन भी ऐसा जिसमें किसी भी प्रकार के इशारे करने की भी गुजाइश न हो यानि की उच्च स्तरीय पूर्ण रुपेण मौन । इसके साथ ही यह भी निश्चय कर लिया था कि इन तीन दिनों की साधना के दौरान अपने उदर की पूर्ति के लिये अन्न तो ग्रहण करना ही नहीं है । चूकि दही हर जगह उपलब्ध हो जाता है इसलिये उस समय मठा का सेवन उचित रहेगा लेकिन वह छाछ ऐसी होगी जिसमें न तो नमक मिलाना है और न ही चीनी । पानी तथा छाछ को छोड़कर अन्य किसी भी खाद्य एवं पेय पदार्थ का सेवन मुझे नहीं करना है । इसके अलावा साधना के उन तीन दिनों के अन्तराल के दौरान सतत् चौबीसों घन्टे घी का दीपक जला कर रखना है तथा यथा संभव धूप या अगरबत्ती जला कर रखनी है। अन्त में रही भजन और शासन की बात इनके लिये मैंने अपने मन में यह धारणा बना ली कि जैसी भी परिस्थितियाँ मेरे समक्ष ऊपस्थित होती जावेंगी उनके अनुसार ही मैं अपने आपको उनमें हालता चला जाऊगाँ। कहते हैं जब मनुष्य अपनी इच्छा को शक्ति को अपने किसी निश्चित विचार को पूर्णता में लगाकर उसी के स्तर पर जीने लगता है तब वह उसके रास्ते में आने वाली तमाम अड़चनों पर भी विजय प्राप्त कर ही लेता है । मेरे साथ भी For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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