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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री व्यवहारसूत्रम् अष्टम उद्देशकः १३६६ (B) क्षेत्रतो यावत् द्वात्रिंशत् योजनानि, तथा अप्रतिहारिणोऽसति अभावे संस्तारकस्य यानि मङ्गलादीनि पूर्वमुक्तानि तानि प्रयोक्तव्यानि ॥ ३४५५ ॥ सूत्रम् - थेराणं थेरभूमिपत्ताणं कप्पति दंडए वा, भंडए वा, छत्तए वा, मत्तए वा, लट्ठिया वा, भिसे वा, चेले वा, चेलचिलमिलिं वा, चम्मे वा, चम्मकोसे वा, चम्मपलिच्छेयणए वा, अविरहिए ओवासे ठवेत्ता गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविसित्तए वा निक्खमित्तए वा । कप्पइ णं सन्नियट्टचारीणं दोच्चं पि उग्गहं अणुनवेत्ता परिहरित्तए ॥ ५॥ 'थेराणं थेरभूमिं पत्ताण'मित्यादि, अस्य सूत्रस्य सम्बन्धप्रतिपादनार्थमाह गाथा वुड्डो खलु समधिकतो, अजंगमो सो य जंगमविसेसो ।। | |३४५४-३४५८ वृद्धावासे अविरहितो वा वुत्तो, सहायरहिए इमा जयणा ॥३४५६॥ विशेषयतनादिः अनन्तरसूत्रे वृद्धः खलु समधिकृतोऽनेनापि सूत्रेण वृद्ध एवोच्यते, स्थविरवृद्धशब्द- ४१३६६ (B) योरेकार्थत्वात् ततः पूर्वसूत्रादनन्तरमस्य सूत्रस्योपन्यासः । नवरं स पूर्वसूत्रे वृद्ध: अजंगमो For Private and Personal Use Only
SR No.020938
Book TitleVyavahar Sutram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages315
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size10 MB
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