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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री व्यवहारसूत्रम् नवम उद्देशकः १४५५ (A) अंडज बोंडज वालज, वामज तह कीडजाण वत्थाणं । नाणादेसागयाणं, साधारणविज्जते गहणं ॥ ३७१६ ॥ अण्डजानां चसूरिसूत्रमयानां, बोण्डजानां कार्पासिकसूत्रमयानां, वालजानां कम्बलानां |* वल्कजानां सणत्वग्मयानां, कीटजानां वस्त्राणां नानादेशागतानां प्रयोजने समापतिते साधारणवर्जिते सागारिकेण सह साधारण्यरहिते आपणे ग्रहणं भवति, दोषाऽभावात्। दृष्टाऽदृष्टविभाषा प्राग्वत् ॥ ३७१६ ॥ सूत्रम्- सागारियस्स ओसहीओ संथडाओ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए गाथा ॥३३॥ ३७१३-३७१९ सागारियस्स ओसहीओ असंथडाओ, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए | औषधादिषु साधारणा॥३४॥ साधारणयोः सागारियस्स अंबफला संथडाओ, तम्हा दावए, नो से कप्पड़ पडिग्गाहेत्तए ॥३५॥ | कल्प्याकल्प्यम् सागारियस्स अंबफला असंथडा, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए ॥३६॥ |१४५५ (A) 'सागारियस्स ओसहीतो' इत्यादि सूत्रचतुष्टयम् । अस्य सम्बन्धप्रतिपादनार्थमाह For Private and Personal Use Only
SR No.020938
Book TitleVyavahar Sutram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages315
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size10 MB
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