SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री सागारियस्स दासे वा, पेसे वा, भयए वा, भइण्णए वा अन्तो वगडाए भुंजड़ निट्ठिए निसिढे अपाडिहारिए, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए ॥ ६ ॥ व्यवहारसूत्रम् __सागारियस्स दासे वा, पेसे वा, भयए वा, भइण्णए वा बाहिं वगडाए भुंजइ, नवम | निट्ठिए निसिढे पाडिहारिए, तम्हा दावए नो से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए ॥ ७ ॥ उद्देशकः सागारियस्स दासे वा, पेसे वा, भयए वा, भइण्णए वा बाहिं वगडाए भुंजइ, १४४२ (A) निट्ठिए निसिढे अपाडिहारिए, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए ॥ ८ ॥ ___ 'सागारियस्स आएसे अंतोवगडाए भुंजति निट्ठिते निसिढे पाडिहारिए' इत्यादि सूत्राष्टकम्। अस्य सम्बन्धप्रतिपादनार्थमाह आहारो खलु पगतो, घेत्तव्वो सो कहिं न वा कहियं ?। सागारियपिंडस्सा, इति नवमे सुत्तसंबंधो ॥ ३६८३ ॥ आहारः खलु अष्टमोद्देशके अन्तिमसूत्रे प्रकृतः। स कुत्र ग्रहीतव्यः ? कुत्र वा न ? || इत्यनेन सूत्रेण प्रतिपाद्यते इति एष नवमे उद्देशके सागारिकपिण्डस्य प्रतिपादकं यद् आदिम : सूत्र १-८ गाथा ३६८३-३६८७ प्रतिहारकभोजिशय्यातरस्य पण्डिः अकल्य्यः १४४२ (A) For Private and Personal Use Only
SR No.020938
Book TitleVyavahar Sutram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages315
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy