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श्री
सागारियस्स दासे वा, पेसे वा, भयए वा, भइण्णए वा अन्तो वगडाए भुंजड़
निट्ठिए निसिढे अपाडिहारिए, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए ॥ ६ ॥ व्यवहारसूत्रम् __सागारियस्स दासे वा, पेसे वा, भयए वा, भइण्णए वा बाहिं वगडाए भुंजइ, नवम | निट्ठिए निसिढे पाडिहारिए, तम्हा दावए नो से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए ॥ ७ ॥ उद्देशकः
सागारियस्स दासे वा, पेसे वा, भयए वा, भइण्णए वा बाहिं वगडाए भुंजइ, १४४२ (A)
निट्ठिए निसिढे अपाडिहारिए, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए ॥ ८ ॥ ___ 'सागारियस्स आएसे अंतोवगडाए भुंजति निट्ठिते निसिढे पाडिहारिए' इत्यादि सूत्राष्टकम्। अस्य सम्बन्धप्रतिपादनार्थमाह
आहारो खलु पगतो, घेत्तव्वो सो कहिं न वा कहियं ?। सागारियपिंडस्सा, इति नवमे सुत्तसंबंधो ॥ ३६८३ ॥
आहारः खलु अष्टमोद्देशके अन्तिमसूत्रे प्रकृतः। स कुत्र ग्रहीतव्यः ? कुत्र वा न ? || इत्यनेन सूत्रेण प्रतिपाद्यते इति एष नवमे उद्देशके सागारिकपिण्डस्य प्रतिपादकं यद् आदिम :
सूत्र १-८
गाथा ३६८३-३६८७ प्रतिहारकभोजिशय्यातरस्य पण्डिः अकल्य्यः
१४४२ (A)
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