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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री व्यवहार सूत्रम् सप्तम उद्देशकः १२९५ (B) मुक्तस्ततः पश्चात्ताभिः सर्वाभिरेककालं पाषाणा मुक्ताः । ततः स पाषाणपुञ्जेनाऽऽक्रान्तश्चौरो मरणमुपागमत्। ततः क्षुल्लकेन तास्ततो निष्काशिताः। एवं क्षुल्लकोऽपि रक्षति, किं पुनर्महान ! तत एतेन कारणेन आचार्य उपाध्यायश्च त्रिवर्षपञ्चवर्षपर्यायस्त्रिंशतषष्टिवर्षपर्यायाणामपि गीतार्थानामपि दीयते ॥ ३२३२॥ सूत्रम्- गामाणुगामं दूइज्जमाणे भिक्खू य आहच्च वीसुंभेज्जा, तं च सरीरगं केइ | | साहम्मिए पासेजा, कप्पइ से तं सरीरगं ‘मा सागारियं' ति कट्ट एगंते अचित्ते बहुफासुए थंडिले पडिलेहित्ता पमजित्ता परिट्ठवेत्तए । सूत्र २० अत्थि य इत्थ केइ साहम्मियसंतिए उवगरणजाए परिहरणारिहे, कप्पइ से | गाथा सागारकडं गहाय दोच्चं पि ओग्गहं अणुन्नवेत्ता परिहारं परिहारित्तए ॥ २०॥ ४३२२८-३२३३ भिक्षुमरणे 'गामाणुगामं दृइज्जमाणे भिक्ख य' इत्यादि । अस्य सत्रस्य सम्बन्धप्रतिपादनार्थमाहअतिरेगट्ठ उवट्ठा, सट्ठी परियाय सत्तरी जम्मं । जरपागं माणुस्सं, पडणं पक्कस्स संबंधो ॥ ३२३३॥ ४१२९५ (B) For Private And Personal Use Only
SR No.020937
Book TitleVyavahar Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size15 MB
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