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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री व्यवहार सूत्रम् सप्तम उद्देशकः १२९३ (A) ܀܀܀܀ www.kobatirth.org गीतार्था वा अगीतार्था वा, तथा वृद्धा वा भवतु अवृद्धा वा यावत् त्रिंशद्वर्षपर्याया तावन्नियमात् त्रिसङ्ग्रहं त्रयाणामाचार्योपाध्यायप्रवर्त्तिनीनां सङ्ग्रहमर्हति, दुसंगहं वा भय परेणं त्रिंशद्वर्षपर्यायात् परतो भजना विकल्पना त्रिसङ्ग्रहं वा अर्हति द्विसङ्ग्रहं वा । तत्र द्विसङ्ग्रहम् उपाध्यायस्य प्रवर्त्तिन्या वा अभावतः ॥ ३२२३ ॥ एतदेव भावयति वयपरिणया य गीया, बहुपरिवारा य निव्वियारा य । होज्ज उ अणुवज्झाया, अपवत्तिणि वा वि जा सट्ठी ॥ ३२२४ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir या वयसा परिणता गीतार्था बहुपरिवारा निर्विकारा च सा यावत् षष्टिस्तावदनुपाध्याया वा भवेदप्रवर्त्तिनी वा । एवं भवति द्विसग्रहिका ॥ ३२३४॥ एमेव अणायरिया, थेरी गणिणी व होज्ज इयरी वा । कालगतोसन्नाए, व दिसाए धरेंति पुव्वदिसं ॥ ३२२५ ॥ षष्टिवर्षेभ्यः परतो गणिनी प्रवर्त्तिनी इतरा वा अप्रवर्त्तिनी स्थविरा अनाचार्या भवेत् । For Private And Personal Use Only गाथा ३२२१-३२२७ ३०, ६० वर्षपर्यायायाः श्रमण्या आचार्योपाध्यायो देशनम् १२९३ (A)
SR No.020937
Book TitleVyavahar Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size15 MB
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