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श्री व्यवहार
बितियागाढे सागारियादि कालगय असति वोच्छेए । एएहिं कारणेहिं, जयणाए कप्पते काउं ॥ ३२१९॥
सूत्रम्
अस्य व्याख्या प्राग्वत् ॥३२१९ ॥
सप्तम
उद्देशकः १२९१ (B)
सूत्रम्- तिवासपरियाए समणे निग्गंथे तीसं वासपरियाए समणीए निग्गंथीए कप्पइ उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए ॥१८॥
पंचवासपरियाए समणे निग्गंथे सट्ठिवासपरियाए समणीए निग्गंथीए कप्पड़ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए ॥१९॥ 'तिवासपरियाए समणे निग्गंथे' इत्यादि। अस्य सम्बन्धमाहसंगहमादीणट्ठाए वायणं देति अन्नमन्नस्स । अयमवि य संगहो च्चिय, दुविहदिसा सुत्तसंबंधो ॥ ३२२०॥
सूत्र १८-१९
गाथा ३२१२-३२२० उपाध्याय
आचार्यउद्देशनकालः श्रमण्या
१२९१ (B)
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