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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री व्यवहार सूत्रम् पंचम उद्देशकः ९९९ (A) परा वएज्जा- "दुस्समुक्किट्ठ ते अजे! निक्खिवाहि" ताए णं निक्खिवमाणाए नत्थि केइ छए वा परिहारे वा। ___ जाओ साहम्मिपीओ अहाकप्पं नो उट्ठाए विहरंति सव्वासिं तासिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा॥ १३ ॥ __पवत्तिणी य ओहायमाणी अन्नयरं वएजा- "मए णं अजे! ओहावियाए समाणीए इयं समुक्कसियव्वा।" सा य समुक्कसिणारिहासमुक्कसियव्वा, सा य नो समुक्कसिणारिहा | नो समुक्कसियव्वा। अत्थि य इत्थ अण्णा काइ समुक्कसिणारिहा सा समुक्कसियव्वा।* सूत्र १-१४ नत्थि य इत्थ अण्णा काइ समुक्कसिणारिहा सा चेव समुक्कसियव्वा। ताए च णं | समुक्किट्ठाए परा वएज्जा- "दुस्समुक्किळं ते अजे! निक्खिवाहि॥" ताए णं ||२२८५-२२८६ निर्ग्रन्थ्याः १० निक्खिवमाणाए नस्थि केइ छए वा परिहारे वा ॥ १४॥ सामाचारी "नो कप्पति पवत्तिणीए" इत्यादि तावत्, यावद् अवधावनसूत्रम् । ९९९ (A) अथ सम्बन्धप्रतिपादनार्थमाह गाथा For Private and Personal Use Only
SR No.020936
Book TitleVyavahar Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages540
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size15 MB
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