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श्री व्यवहार
सूत्रम् पंचम उद्देशकः ९९९ (A)
परा वएज्जा- "दुस्समुक्किट्ठ ते अजे! निक्खिवाहि" ताए णं निक्खिवमाणाए नत्थि केइ छए वा परिहारे वा। ___ जाओ साहम्मिपीओ अहाकप्पं नो उट्ठाए विहरंति सव्वासिं तासिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा॥ १३ ॥ __पवत्तिणी य ओहायमाणी अन्नयरं वएजा- "मए णं अजे! ओहावियाए समाणीए इयं समुक्कसियव्वा।" सा य समुक्कसिणारिहासमुक्कसियव्वा, सा य नो समुक्कसिणारिहा | नो समुक्कसियव्वा। अत्थि य इत्थ अण्णा काइ समुक्कसिणारिहा सा समुक्कसियव्वा।*
सूत्र १-१४ नत्थि य इत्थ अण्णा काइ समुक्कसिणारिहा सा चेव समुक्कसियव्वा। ताए च णं | समुक्किट्ठाए परा वएज्जा- "दुस्समुक्किळं ते अजे! निक्खिवाहि॥" ताए णं ||२२८५-२२८६
निर्ग्रन्थ्याः १० निक्खिवमाणाए नस्थि केइ छए वा परिहारे वा ॥ १४॥
सामाचारी "नो कप्पति पवत्तिणीए" इत्यादि तावत्, यावद् अवधावनसूत्रम् ।
९९९ (A) अथ सम्बन्धप्रतिपादनार्थमाह
गाथा
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