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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री व्यवहार सूत्रम् पंचम उद्देशकः ९९८ (B) ܀܀܀܀܀܀ 15 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir fe या इत्थ काइ अण्णा उवसंपज्जणारिहा तीसे य अप्पणो कप्पड़ असमत्ते, एवं से कप्पइ एगराइयाए पडिमाए जण्णं-जाणं दिसं अण्णाओ साहम्मिणीओ विहरंति aणं तणं दिसं उवलित्तए । नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए । कप्पड़ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए । तंसि च णं कारणंसि निट्ठियंसि परो वएज्जा-' वसाहि अज्जे ! एगरायं वा दुरायं वा', एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए । नो से कप्पइ परं गयाओ दुरायाओ वा वत्थए । जा तत्थ एगरायाओ वा दुरायाओ वा परं वसइ सा संतरा छेए वा परिहारे वा ॥ १२ ॥ 20 पवत्तिणीय गिलायमाणी अन्नयरं वएज्जा- "मए णं अज्जे ! कालगयाए समाणीए • इयं समुक्कसियव्वा।" सा य समुक्कसिणारिहा समुक्कसियव्वा, सा य नो समुक्कसिणारिहा 2 नो समुक्कयिव्वा । अत्थि य इत्थ अण्णा काइ समुक्कसिणारिहा सा समुक्कसियव्वा । नथ य इत्थ अण्णा काइ समुक्कसिणारिहा सा चेव समुक्कसियव्वा । ताए च णं समुक्किट्ठाए For Private and Personal Use Only सूत्र १-१४ गाथा | २२८५-२२८६ निर्ग्रन्ध्याः सामाचारी ९९८ (B)
SR No.020936
Book TitleVyavahar Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages540
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size15 MB
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