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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यवहार पंचम गामाणुगामं दूइजमाणी निग्गंथी यजं पुरओ काउं विहरइ सा य आहच्च वीसुंभेज्जा. श्री अत्थि या इत्थ काइ अन्ना उवसंपज्जणारिहा, सा उवसंपजियव्वा, नत्थि या इत्थ काइ सूत्रम् अन्ना उवसंपज्जणारिहा, तीसे य अप्पणो कप्पाए असमत्ते एयं से कप्पइ एगराइयाए पडिमाए जण्णं जणं दिसं अन्नाओ साहम्मिणीओ विहरंति तण्णं तण्णं दिसं उवलित्तए उद्देशकः Mनो कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए । कप्पइ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए । तंसि च । ९९८ (A) णं कारणंसि निट्ठियंसि परो वएज्जा- 'वसाहि अज्जे ! एगरायं वा दुरायं वा', एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए । नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ : सूत्र १-१४ वा वत्थए । जा तत्थ एगरायाओ वा दुरायाओ वा परं वसइ सा संतरा छेए वा परिहारे वा॥ ११॥ २२८५-२२८६ निर्ग्रन्थ्याः वासावासं पज्जोसविया णिग्गंथी य जं पुरओ काउं विहरइ, सा य आहच्च वीसुंभेजा, 2 सामाचारी अस्थि या इत्थ काइ अण्णा उवसंपज्जणारिहा सा उवसंपज्जियव्वा । ९९८ (A) १. अत्थि याई थ- श्युब्रींग एवमग्रेऽपि॥२. नत्थि याई थ- श्युबींग। गाथा ܀܀܀܀܀܀ For Private and Personal Use Only
SR No.020936
Book TitleVyavahar Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages540
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size15 MB
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