SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री 14 व्यवहारसूत्रम् चतुर्थ उद्देशकः ९२१ (B) सूत्रम्- चरियानियट्टे भिक्खू जाव चउरायपंचरायातो थेरे पासेज्जा, सच्चेव आलोयणा, सच्चेव पडिक्कमणा, सच्चेव उग्गहस्स पुव्वाणुण्णवणा चिट्ठति, अहालंदमवि उग्गहे॥२२॥ ___ चरियानियट्टे भिक्खू परं चउरायपचंरायातो थेरे पासेज्जा, पुणो आलोएजा, पुणो पडिक्कमेजा, यस्स परिहारस्स वा उवट्ठाएज्जा, भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चंपि उग्गहे अणुण्णवेयव्वे सिया। कप्पइ से एवं वदित्तए- अणुजाणह भंते ! मितोग्गहं | अहालंदं धुवं निययं निच्छइयं वेउट्टियं ततो पच्छा कायसंफासमिति ॥ २३ ॥ अस्य च सूत्रद्वयस्याप्यर्थः स एव यश्चरिकाप्रविष्टसूत्रद्वयस्य। यद्येवं किमर्थमनयोरुपादानं? चरिकाप्रविष्टसूत्राभ्यामेव गतार्थत्वात्; तथाहि- सैव चरिकाप्रविष्टानां सामाचारी सैव चरिकातो निवृत्तानामपीति। सत्यमेतत्, केवलमनुच्चारिते निवृत्तसूत्रद्वये यैव चरिकाप्रविष्टानां सामाचारी | सैव चरिकातो निवृत्तानामपीति न लभ्यते, सूत्रेऽनुपात्तत्वात्; किन्त्वन्यत् किमपि कल्प्येत, ततः कल्पनान्तरं मा भूदिति निवृत्तसूत्रद्वयमिति सूत्रपञ्चकसंक्षेपार्थः । १. छेयपरिहारस्स उव' श्युबींग संस्करणे आगमप्रकाशने च॥ २. नितियं वेउट्टियं-श्युबींग. आगमप्रकाशने च॥ २०-२३ चरिकायां सामाचारी ९२१ (B) For Private and Personal Use Only
SR No.020936
Book TitleVyavahar Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages540
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy