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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यवहारसूत्रम् चतुर्थ उद्देशकः ९०१ (B) ܀܀܀܀܀܀܀܀܀ त्थानात् । अष्टादशमासा भिक्षोश्चिकित्सायाम्, ततः परमसाध्यतया शक्तौ सत्यां भक्तविवेकस्यैव कर्तुमुचितत्वात् ॥२०१३॥ सूत्रम्- आयरिय-उवज्झाए सरेमाणे परं चउराय-पंचरायाओ कप्पागं भिक्खं णो | उवट्ठावेइ कप्पाए अस्थि याइं से केइ माणणिजे कप्पागे, णत्थि याइं से केइ छए |* वा परिहारे वा, नत्थि याइं से केइ माणणिज्जे कप्पाए, से संतरा छेए वा परिहारे वा |* ॥ १५॥ "आयरिय-उवज्झाए सरेमाणे" इत्यादि । अस्य सूत्रस्य सम्बन्धमाह सूत्र १५ गाथा ओहाविय भग्गवते, होइ उवट्ठा पुणो उवट्ठते । २००९-२०१४ उक्कसणा वा पगया, इमा वि अण्णा समुक्कसणा ॥ २०१४ ॥ उपस्थापना ___ऽकरणे पूर्वमवधावित उक्तः । स चेदवधावितो भग्नव्रतो जायेत, भग्नव्रतश्च भूत्वा पुनरुपतिष्ठति || प्रायश्चित्तादिः ततस्तस्मिन्नवधावितभग्नव्रते पुनरुपतिष्ठति भवत्युपस्थापना कर्तव्या। तत उपस्थापना- ९०१ (B) प्रतिपादनार्थमधिकृतं सूत्रम्। अथवा पूर्वसूत्रे समुत्कर्षणा प्रकृता, इयमप्यधिकृत For Private and Personal Use Only
SR No.020936
Book TitleVyavahar Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages540
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size15 MB
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