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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री व्यवहार सूत्रम् चतुर्थ उद्देशकः ८५१ (A) ܀܀܀܀܀܀ www.kobatirth.org नो से कप्पड़ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पड़ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए । तंसि च णं कारणंसि निट्ठियंसि परो वएज्जा- "वसाहि अज्जो ! एगरायं वा दुरायं वा "। एवं से कप्पड़ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए । जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वसइ, से संतरा छेए वा परिहारे वा ॥ ११ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "गामाणुगामं दूइज्जमाणे भिक्खू जं पुरतो कट्टु विहरइ" इत्यादि, अथास्य सूत्रस्य कः सम्बन्ध: ? तत आह आयरियउवज्झाए व अहिकिए अहिकिए य कालम्मि । निस्सोवसंपयत्ति य, एगट्ठमयं तु संबंधो ॥ १८७३ ॥ अधस्तनेष्वनन्तरसूत्रेष्वाचार्य उपाध्यायो वाधिकृतः, कालो वा ऋतुबद्धो वर्षाकालश्चाधिकृतः, ततस्तस्मिन्नधिकृते सूत्रे इदं सूत्रमापतितम्, अत्राप्याचार्यस्योपाध्यायस्य वा ऋतुबद्धे १. जे - आगमप्रकाशने ॥ For Private and Personal Use Only ܀܀܀ सूत्र ११ गाथा १८७०-१८७४ उवसम्पत्सामाचारी ८५१ (A)
SR No.020936
Book TitleVyavahar Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages540
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size15 MB
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