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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री | व्यवहारसूत्रम् चतुर्थ उद्देशकः ८५० (B) 'राजा प्रधानम्' इति सर्वं राज्ञ आयत्तम् एवमत्रापि पुरुषः प्रधानमिति सर्वं पुरुषस्यायत्तम्, अतः सर्वमस्माकमाभवति ४॥ १८७१ ॥ एवं व्यवहारे वर्तमाने श्रुतधर आचार्यो व्यवहारं छेत्तुकाम इदमाहएमादि उत्तरोत्तरदिटुंता बहुविहा न उ पमाणं । पुरिसोत्तरिओ धम्मो, होइ पमाणं पवयणम्मि ॥ १८७२ ॥ एवमादय उत्तरोत्तरदृष्टान्ता बहुविधा अभिधीयमाना न प्रमाणम्, किन्तु प्रवचने पुरुषोत्तरिको धर्म इति पुरुषः प्रमाणम्, अतः सर्वं पुरुषसत्का लभन्ते, नेतरे इति ॥ १८७२ ।। ___ सूत्रम्- गामाणुगामं दुइजमाणे भिक्खू जं पुरतो कट्ट विहरइ, से आहच्च | विसुंभेजा, अत्थि या इत्थ अन्ने केइ उवसंपजणारिहे, से उवसंपज्जियब्वे सिया, णत्थि या इत्थ अन्ने केइ उवसंपजणारिहे, अप्पणो कप्पाए असम्मत्ते कप्पइ से एगराइयाए पडिमाए जण्णं जणं दिसं अन्ने साहम्मिया विहरंति तण्णं तण्णं दिसं उवलित्तए। १. णो-श्युब्रींग॥ २. विसंभेज्जा-श्युबींग॥ ३. या इंथ-प्रतिलिपि-श्युबींग संस्करणे च। एवमग्रेऽपि ॥ । सूत्र ११ गाथा १८७०-१८७४ उवसम्पत्सामाचारी X |८५० (B) For Private and Personal Use Only
SR No.020936
Book TitleVyavahar Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages540
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size15 MB
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