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श्री
व्यवहार
सूत्रम्
तृतीय उद्देशक:
७०८ (B)
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सच्चेव णं से तिवासपरियाए समणे निग्गंथे नो आयारकुसले जाव नो उवग्गहकुसले खंयायारे, भिन्नायारे, सबलायारे, संकिलिट्ठायारे, अप्पसुए अप्पागमे नो कप्पइ उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए ॥४॥
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पंचवासपरियाए समणे निग्गंथे [ आयारकुसले जाव असंकिलिट्ठायारे ] जहन्नेणं दसकप्पववहारधरे कप्पड़ आयरियउवज्झायत्ताए उद्दित्तिए ॥ ५ ॥
सच्चेव णं से पंचवासपरियाए समणे निग्गंथे [ णो आयारकुसले जाव संकिलिट्ठायारे णो जहन्नेणं दसाकप्पववहारधरे ] नो कप्पड़ आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए ॥ ६ ॥ अट्ठवासपरियाए समणे निग्गंथे [ आयारकुसले जाव असंकिलिट्ठायारे ] जहन्नेणं ठाण समवायधरे कप्पइ आयरियत्ताए जाव गणावच्छेइत्ताए उद्दिसित्तए ॥ ७ ॥ सच्चेव णं से आचार्योअट्ठवासपरियाए, समणे निग्गंथे [ णो आयारकुसले जाव संकिलिट्ठायारे णो जहन्त्रेणं ठाण - समवायधरे ] नो कप्पड़ आयरियत्ताए जाव गणावच्छेइयत्ताए उद्दिसित्तए ॥८ ॥
सूत्र ३-८ गाथा १४५८ - १४४९
पाध्याययोग्यायोग्यत्वम्
१ सुया प्रतिलि° २. 'ट्ठायारचित्ते - श्युब्रींग ॥ ३ दसा' आगमप्र ॥
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