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[लकारार्थ के विषय में विविध मत ]
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लकारार्थ-निर्णयः
१.
२.
३.
ग्रंथ नैयायिकानां मते संक्षेपात् लकाराणाम् ग्रर्थो निरूप्यते । तत्र लडादि - लृङन्ताः दश लकाराः । तत्र लकारस्य 'कर्त्ता', 'काल:', 'संख्या' इति त्रयोऽर्थाः । तत्र 'कर्ता' इति पातंजला : - " लः कर्मणि' च० " इति सूत्रे चकारेण कर्त्तुः परामर्शात् । 'कर्तृ ' -स्थाने 'व्यापारः ' इति भाट्टा: । 'यत्नः' इति नैयायिकाः । युक्तं चैतत्व्यापारताद्यपेक्षया लाघवेन यत्नत्वस्यैव शक्य ताव
च्छेदकत्वात् ।
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नैयायिकों के मत के अनुसार संक्षेप में 'लकारों' के अर्थ के विषय में विचार किया जाता है । यहाँ ( व्याकरण में) 'लट्' से लेकर 'लृङ्' तक दस 'लकार' हैं । उनमें लकार के तीन अर्थ हैं - 'कर्ता', 'काल' तथा 'संख्या' । इस प्रसंग में " (लकारों' का अर्थ) कर्त्ता' है " -- यह पतंजलि के अनुयायियों ( वैयाकरण विद्वानों) का मत है क्योंकि "लः कर्मणि च ० " इस सूत्र में 'च' पद से ( कर्तृवाच्य में 'लकार' के अर्थ ) 'कर्ता' की सूचना मिलती है । 'कर्ता' के स्थान पर ('लकारों' का अर्थ ) 'व्यापार' है - यह कुमारिल भट्ट के अनु
fi ( मीमांसक विद्वानों के एक वर्ग ) का मत है । 'लकार' का अर्थ 'यत्न' है - यह नैयायिकों का मत है और यह ( नैयायिकों का मत ही) ठीक है क्योंकि 'व्यापार' आदि ( कर्तृत्व ) की अपेक्षा, लाघव के कारण, 'यत्नत्व' ही ('लकारों' की) वाच्यार्थता का प्रवच्छेदक है ।
नैयायिक विद्वान् 'लकार', अर्थात् 'तिब्' आदि प्रदेशों के स्थानी, को ही अर्थ का वाचक मानते हैं उसके स्थान पर आने वाले 'आदेशों' ('तिब्' आदि) को नहीं । इस बात की चर्चा ऊपर हो चुकी है ( द्र० इस ग्रन्थ का पूर्व पृष्ठ २४३-४४) । यहां विविध दार्शनिकों की दृष्टि से 'लकार' के अर्थ के विषय में विचार किया जारहा है । वैयाकरण 'लकार' (अथवा उसके 'प्रदेश तिब्' प्रादि) का अर्थ 'कर्ता' मानते हैं । दूसरी ओर
ह० -- नैयायिक - |
ह्० - “लः कर्मणि०" इति सूत्रस्थचकारेण ।
काप्रशु० - शक्तता |
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