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वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा
दोनों में कार्यकारणभाव' एवं, जब जब सुवृष्टि नहीं होगी तब तब सम्पन्नता नहीं होगी ---इस प्रकार की, 'पापादना' की प्रतीति होती है ।
प्रापादना :-अगले प्रकरण 'लकारार्थ-निर्णय' के अन्त में “सा चापादना तर्कः" कह कर नागेश ने यह स्पष्ट कर दिया कि 'तर्क' के पर्याय के रूप में ही उन्होंने यहाँ तथा आगे, नैयायिकों के अनुसार “लुङ' लकार के अर्थ-प्रदर्शन के अवसर पर, भी 'पापादना' शब्द का प्रयोग किया है ।
'तर्क' की परिभाषा की गयी है-"व्याप्यारोपेण व्यापकारोपस्तर्कः' (तर्कसंग्रह, गुण-प्रकरण) इस का अभिप्राय है कि 'व्याप्य', अर्थात् अल्प देश या स्थान में रहने वाले, के काल्पनिक ज्ञान के द्वारा व्यापक, अर्थात् अधिक देश या स्थान में रहने वाले, का काल्पनिक ज्ञान करना । परिभाषा में 'आरोप' का अर्थ है 'पाहार्य', अर्थात् काल्पनिक ज्ञान । जैसे-पर्वत में आग तथा धूम दोनों हैं परन्तु उनके अभाव के काल्पनिक ज्ञान के द्वारा धूमाभाव का काल्पनिक ज्ञान किया जाता है। यहां अग्नि का अभाव 'व्याप्य' है तथा धूम का अभाव 'व्यापक' है। इसलिये इन दोनों के आधार पर यह 'तर्क' प्रस्तुत किया जाता है कि 'यदि यहाँ आग नहीं होती तो धूआँ भी नहीं होता ।'
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