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दश-लकारादेशार्थ-निर्णय
२६१ अपक्ष्यत । भविष्यति-सुवृष्टिश्चेद् अभविष्यत् सुभिक्षम् अभविष्यद् इति संक्षेपः ।
___ इति दश-लकारादेशार्थ-निर्णयः । 'लङ्' (लकार) के 'आदेश' ('तिङ्') का तो क्रिया की अनिष्पत्ति (असिद्धि) के गम्यमान होने तथा 'हेतुहेतुमद्भाव' (कार्यकारणभाव) के प्रतीत होने पर भूत काल तथा भविष्यत् काल अर्थ है । 'पापादना' (एक वस्तु के न होने पर दूसरी वस्तु के न होने का प्रसंग) तो गम्य है। भूतकाल में (उदाहरण है) - 'एधश्चेद् अलप्स्यत प्रोदनम् अपक्ष्यत' (यदि लकड़ी मिली होती तो चावल पका होता)। भविष्यत् काल में (उदाहरण है)--'सुवृष्टिश्चेद् अभविष्यत् सुभिक्षम् अभविष्यत (यदि अच्छी वष्टि होगी तो सम्पन्नता होगी)। (वैयाकरणों की दृष्टि से) यह संक्षिप्त (लकारार्थनिर्णय) है।
लुङादेशस्य..... भविष्यत्त्वं चार्थः -- 'लुङ' लकार का विधायक प्रथम सूत्र है "लिनिमित्त लङ क्रियातिपत्तौ' (पा० ३.३.१३९)। इस सूत्र में ऊपर के सूत्र "भविष्यति मर्यादावचनेऽवरस्मिन्" (पा० ३.३.१३८) से 'भविष्यति' पद की अनुवृत्ति प्रा रही है । अतः यह सूत्र भविष्यत् काल में, 'लिङ् लकार के निमित्तभूत 'हेतुहेतुमद्भाव' अथवा कार्यकारणभाव' आदि की प्रतीति होने पर तथा क्रिया की 'अतिपत्ति' (असिद्धि या अनिष्पत्ति) के प्रतीत होने पर, 'लुङ' लकार का विधान करता है। 'लुङ' लकार का विधायक द्वितीय सूत्र है "भूते च' (पा० ३.३.१४०)। यह सूत्र उपरनिर्दिष्ट स्थितियों के होते हुए 'भूत' काल में 'लुङ' लकार का विधान करता है । अत: 'लुङ' लकार से, इन विशिष्ट स्थितियों के साथ, भविष्यत् काल तथा भूत काल की प्रतीति होती है।
पापादना तु गम्यमाना :---उपर्युक्त “लिङ निमित्ते लङ क्रियातिपत्तौ” सूत्र में 'अतिपत्ति' पद का अर्थ है 'क्रिया का निष्पन्न न होना' । इस 'अतिपत्ति' तथा 'कार्यकारणभाव' के गम्यमान रहने के कारण ही 'लङ' के प्रयोगों में एक प्रकार के तर्क अथवा, नागेश के शब्दों में, 'पापादना' की प्रतीति होती है। यहाँ 'लुङ' के उपर्युक्त दोनों उदाहरणों में ये तीनों ही बातें - 'क्रिया की असिद्धि', 'हेतुहेतुमद्भाव' (कार्य कारणभाव) तथा 'पापादना'-- अभिव्यक्त होती हैं।
प्रथम उदाहरण में भूतकाल की दृष्टि से ईधन का प्राप्त होना रूप क्रिया तथा चावल का पकना रूप क्रिया दोनों की असिद्धि, ईंधन का न मिलना रूप कारण तथा भात का न पकना रूप कार्य तथा यदि ईधन मिलता तो भात पकता इस प्रकार की 'पापादना' (तर्क) की प्रतीति होती है।
इसी तरह दूसरे उदाहरण में भविष्यत् काल की दृष्टि से सुवृष्टि का होना रूप किया तथा सम्पन्नता एवं समृद्धि का होना रूप क्रिया की प्रसिद्धि, सुवृष्टि का न होना रूप क्रिया की कारणता और समृद्धि का न होना रूप क्रिया की कार्यता-इस रूप में १. ह.-गुराज्यम् ।
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