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श्री-वीरवर्धमानचरित
५. सुधर्मा-ये कोल्लागसन्निवेशके अग्निवेश्यायनगोत्रीय ब्राह्मण थे। इनकी माताका नाम भद्दिला और पिताका नाम धम्मिल्ल था। इनका विश्वास था कि वर्तमानमें जो जीव जिस पर्यायमें है वह मरकर भी उसी पर्यायमें उत्पन्न होता है। पर आगम प्रमाण न मिलनेसे ये अपने मतमें सन्दिग्ध थे। भगवानसे सयुक्तिक समाधान पाकर ये अपने ५०० शिष्योंके साथ दीक्षित हो गये । उस समय इनको अवस्था ५० वर्षकी थी। ये ४२ वर्ष तक गणधर पदपर रहे और ८ वर्ष तक केवलीपर्यायमें रहकर १०० वर्षकी आयु पूर्ण कर भगवान्के निर्वाणके २० वर्ष बाद मोक्ष पधारे।
६. मण्डित-ये मौर्यसन्निवेशके वशिष्ठगोत्रीय ब्राह्मण थे। इनकी माताका नाम विजया और पिताका नाम धनदेव था । इन्हें बन्ध और मोक्षके विषयमें शंका थी। भगवान् से शंका-निवारण होनेपर ये अपने ३५० शिष्योंके साथ दीक्षित हो गये। उस समय इनकी अवस्था ५३ वर्षकी थी। १४ वर्ष तक गणधरके पदपर रहकर इन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया। १६ वर्ष तक केवलीपर्यायमें रहकर ८३ वर्षकी अवस्थामें भगवान्से पूर्व ही इन्होंने निर्वाण प्राप्त किया।
७. मौर्यपुत्र-ये भी मौर्यसग्निवेशके काश्यपगोत्रीय ब्राह्मण थे। इनकी माताका नाम विजया और पिताका नाम मौर्य था, इसी कारणसे ये मौ-पुत्र कहलाते थे। इन्हें देवोंके अस्तित्वके विषयमें शंका थी। भगवान्से उसकी निवृत्ति होनेपर ६५ वर्षकी आयुमें इन्होंने भगवान्से ३५० शिष्योंके साथ दीक्षा ग्रहण की। १४ वर्ष तक गणधर पदपर रहकर ७९ वर्षकी अवस्थामें इन्होंने केवलज्ञानको प्राप्त किया। १६ वर्ष तक केवलीपर्यायमें रहकर ९५ वर्षकी अवस्थामें भगवान्के सामने ही मोक्ष पधारे।
८. अकम्पित-ये मिथिलाके रहनेवाले गौतमगोत्रीय ब्राह्मण थे। इनकी माताका नाम जयन्ती और पिताका नाम देव था । इनको नरकगतिके विषयमें शंका थी । भगवान्से शंका निवृत्त होनेपर इन्होंने ४८ वर्षकी अवस्थामें अपने ३०० शिष्योंके साथ दीक्षा ग्रहण की। ९ वर्ष तक गणधर पदपर रहकर इन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया। २१ वर्ष तक केवलीपर्यायमें रहकर भगवानके जीवनके अन्तिम वर्षमें निर्वाण प्राप्त किया।
९. अचलभ्राता-ये कोशल-निवासी हारीतगोत्रीय ब्राह्मण थे। माताका नाम नन्दा और पिताका नाम वसु था। इन्हें पुण्य-पापके विषयमें शंका थी। भगवानसे शंकाकी निवृत्ति होनेपर ४६ वर्षकी अवस्थामें इन्होंने ३०० शिष्यों के साथ दीक्षा ग्रहण की। १२ वर्ष तक गणधरके पदपर रहकर केबलज्ञान प्राप्त किया और १४ वर्ष केवलीपर्यायमें रहकर भगवान्से ४ वर्ष पूर्व ही मोक्ष पधारे ।
१०. मेतार्य-ये वत्सदेशान्तर्गत तुंगिक सन्निवेशके निवासी कौडिन्य गोत्रीय ब्राह्मण थे। माताका नाम वारुणी और पिताका नाम दत्त था। इनको पुनर्जन्मके विषयमें शंका थी। भगवानसे समाधान पाकर ३०० शिष्योंके साथ इन्होंने दीक्षा ग्रहण की, उस समय आपकी अवस्था ३६ वर्षकी थी। १० वर्ष तक गणधरके पदपर रहकर ४६ वर्षको अवस्थामें केवलज्ञान प्राप्त किया और १६ वर्ष तक केवली पर्यायमें रहकर भगवानके जीवनकालमें ही ६२ वर्षकी आयमें इन्होंने निर्वाण प्राप्त किया।
११. प्रभास-ये राजगृहके निवासी और कौडिन्य गोत्रीय ब्राह्मण थे। माताका नाम अतिभद्रा और पिताका नाम बल था। इन्हें मोक्षके विषयमें शंका थी। वीरप्रभके द्वारा शंकाका समाधान होनेपर इन्होंने अपने ३०० शिष्योंके साथ १६ वर्षकी आयुमें दीक्षा ग्रहण की। पुनः ८ वर्ष तक गणधरके पदपर रहकर केवलज्ञान प्राप्त किया। १६ वर्ष तक केवली रहकर केवल ४० वर्षकी आयुमें इन्होंने भगवानसे ६ वर्ष पूर्व ही निर्वाण प्राप्त किया। ये सभी गणधरोंमें सबसे छोटी आयुमें अर्थात् ४० वर्षकी अवस्थामें निर्वाणको गमन किये।
यहाँ यह ज्ञातव्य है कि उक्त सभी गणधर जन्मना ब्राह्मण थे और वेद-वेदांग आदि सभी विद्याओंके ज्ञाता थे। इन सबका शिष्य-परिवार अलग-अलग था। इनके दीक्षा लेनेपर भगवान प्रत्येकको उनके साथ दीक्षित होनेवाले शिष्य-मुनियोंका गणधर बनाया, ऐसा श्वेताम्बर परम्परामें स्पष्ट उल्लेख है। इस उल्लेखसे प्रायः पछी जानेवाली इस शंकाका भी समाधान हो जाता है कि प्रत्येक तीर्थंकरके अनेक गणधर क्यों होते हैं
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