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प्रस्तावना
अथेन्द्रभूतिरेवाद्यो वायुभूत्याग्निभूतिको । सुधर्ममौर्यमौण्डाख्यपुत्रमैत्रेयसंज्ञकाः ॥२०६॥ अकम्यनोऽन्धवेलाख्यः प्रभासोऽमी सुरार्चिताः । एकादश चतुर्ज्ञानाः संमतेः स्युर्गणाधिपाः ॥२०७॥
(प्रस्तुत चरित्र, अधि. १९) पाठक यदि दोनों पाठोंको ध्यानसे देखेंगे तो उन्हें यह बात स्पष्ट ज्ञात होगी कि सकलकीतिके सम्मुख उत्तरपुराणके उक्त श्लोक उपस्थित थे और उन्होंने गणधरोंके नाम साधारण-सा परिवर्तन कर ज्योंके त्यों रख दिये हैं। भारतीय ज्ञानपीठसे मद्रित उत्तरपुराणमें 'अकम्पनोऽन्धवेलाख्यः' पीठपर टिप्पणी नम्बर देकर 'अकम्पनोऽन्धचेलाख्यः इति क्वचित्' के रूपमें पाठान्तर दिया गया है। यदि इस पाठके स्थानपर 'अकम्पनोऽचलभ्राता' इस पाठकी कल्पना कर ली जाये तो अन्धवेलके स्थानपर अचलभ्राता नाम सहजमें प्राप्त हो जाता है। इसी प्रकार 'मोण्डाख्यपत्र' पाठके स्थानपर 'मौण्डार्यव्यक्त' पाठकी कल्पना कर ली जाये, तो 'पुत्र' इस असंगत-से नामके स्थानपर श्वेताम्बर-परम्परागत 'आर्यव्यक्त' यह नाम भी सहजमें उपलब्ध हो जाता है। और उक्त कल्पनाके करने में कोई असंगति भी नहीं है, प्रत्युत श्वेताम्बर परम्पराके साथ संगति ठीक बैठ जाती है। श्वेताम्बर परम्परामें उक्त ग्यारहों ही गणधरोंका विस्तृत परिचय-विवरण उपलब्ध है, जबकि दिगम्बर परम्परामें केवल उक्त नामोल्लेखके अतिरिक्त कुछ भी परिचय प्राप्त नहीं है।
यहाँपर श्वेताम्बर शास्त्रोंके आधारपर सर्व गणधरोंका संक्षिप्त परिचय दिया जाता है, जिससे कि पाठकोंको उनके विषयमें कुछ जानकारी मिल सकेगी।
-गौतमगोत्री ब्राह्मण थे। ये मगध देशके अन्तर्गत 'गोबर' ग्रामके निवासी थे। इनकी माताका नाम पृथ्वी और पिताका नाम वसुभूति था। ये वेद-वेदांगके पाठी और अपने समयके सबसे बड़े वैदिक विद्वान थे। इनको 'द्रष्टव्यो रेऽयमात्मा' इत्यादि वेदमन्त्रमें आये 'आत्मा' के विषयमें ही सन्देह था। इन्द्रके द्वारा पूछे गये काव्यार्थको जब ये न बता सके, तब ये उसके साथ भगवान महावीरके पास पहुंचे और जीव-विषयक अपनी शंकाका समुचित समाधान पाकर अपने ५०० शिष्योंके साथ उनके शिष्य बन गये। दीक्षाके समय इनकी अवस्था ५० वर्षकी थी। ये ३० वर्ष तक भगवान्के प्रधान गणधर रहे। जिस दिन भगवान् मोक्ष पधारे, उसी दिन इनको केवलज्ञानकी प्राप्ति हुई। १२ वर्ष तक केवली पर्यायमें रहकर इन्होंने निर्वाण प्राप्त किया।
२. अग्निभूति-ये इन्द्रभूतिके सगे मझले भाई थे। इनको कर्मके विषयमें शंका थी। ये भी इन्द्रभूतिके साथ गये थे और भगवान्के द्वारा अपनी शंकाका सयुक्तिक समाधान पाकर अपने ५०० शिष्योंके साथ दीक्षित हो गये । उस समय इनकी अवस्था ४६ वर्षकी थी। १२ वर्ष तक गणधरके पदपर रहकर केवलज्ञान प्राप्त किया । १६ वर्ष तक केवलीपर्यायमें रहकर ये भगवानके जीवन-कालमें ही मोक्ष पधारे।
३. वायुभूति-ये इन्द्रभूतिके सबसे छोटे सगे भाई थे । इनको जीव और शरीरके विषयमें शंका थी । ये भी इन्द्रभूतिके साथ भगवान के पास गये थे और भगवानसे अपनी शंकाका समाधान पाकर ५०० शिष्योंके साथ दीक्षित होकर गणधर बने । दीक्षाके समय इनकी अवस्था ४२ वर्षकी थी। १० वर्ष तक गणधरके पदपर रहकर इन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया और १८ वर्ष तक केवलीपर्यायमें रहकर भगवान महावीरके निर्वाणसे दो वर्ष पूर्व ही इन्होंने मोक्ष प्राप्त किया।
४. आर्यव्यक्त-ये कोल्लागसन्निवेशके भारद्वाजगोत्रीय ब्राह्मण थे। इनकी माताका नाम वारुणी और पिताका नाम धनमित्र था । ये पृथ्वी आदि पांच भूतोंसे जीवकी उत्पत्ति मानते थे। इन्हें जीवकी स्वतन्त्र सत्तामें शंका थी। भगवान महावीरसे अपनी शंकाका समाधान पाकर इन्होंने अपने ५०० शिष्योंके साथ दीक्षा ले ली। उस समय इनकी अवस्था ५० वर्षकी थी। १२ वर्ष तक गणधर पदपर रहकर केवलज्ञान प्राप्त किया और १८ वर्ष तक केवलीपर्याय में रहकर भगवान्के जीवनकालमें ही मोक्ष पधारे।
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