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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३७) माया और चेतनका संयोगभी अनादि सान्त है. माया ब्रह्मको अनादि होनेसे तिनोका संयोगभी अनादि है, ज्ञानसे नाश होनेसे सान्तभी है ॥ ४ ॥ जीवईश्वरका भेदभी अनादि तथा ज्ञानसें नाशवंत होनेते सान्तभी कह्या है. जीवेशकी उत्पत्ति अपनेसे माननेमे आत्माश्रयदूषण होव है, परस्परोत्पत्ति माननेसे अनादित्वकी हानी होनेसे; अनादियोंका भेदभी अनादिही मान्या है. सादि माननेसे कौनवत्सरमे कौन उत्पन्न हुवा ? एस प्रमाणकाभी अभाव होनसे षट् पदार्थ अनादि है॥ ___ ५॥ और अनादि शब्द बहुत कालकाभी नाम है. जैस स्वप्नपदार्थ स्वप्नकालविषे नही जानपरते जो किस समय उत्पन्न भये; किंतु तिसकालमे बहुत कालके अनादि है एसे जाननेसे अनादि शब्द बहु कालका वाचक है. यह लोकप्रसिद्ध वार्ता है॥ * इति श्रीपंचमकमले षट् पदार्थकथनं । * *॥ अथ षष्ट कमलमे अष्टांग योगका वर्णनं ॥ १॥यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, सविकल्प, निर्विकल्प, भेदसे दो प्रकारकी समाधि, ये अष्ट योगके अंग है. सो यथा क्रमसे प्रतिपादन करते है. For Private and Personal Use Only
SR No.020885
Book TitleVedant Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVigyananand Pandit
PublisherSarasvati Chapkhanu
Publication Year1837
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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