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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (२५) ७ ॥ और जो कहा है नित्यनैमित्तिक के न कर नेसे पाप होवे है. सो भगवानके वचनसाथ विरोधी होनेते तिनोंके वाक्य उन्मत्तके वाक्यसमान त्यागने योग्य है. सो भगवानका यह वाक्य है. ' नासतो विद्यते भावो इति अर्थ यह है जो अभावकी सत्ता नही होती इति. यांते नहीकरने रूप अभावते पापरूप भाव वस्तु कैसे उत्पन्न होवेगी ? यांते तिनोका कथन मिथ्या है. और जो कह्या वासनाके अभावते संचितपुण्यकर्म फल नही देवेगा सो कैसे जाननेमे आवे ? जो एसेही होवे तो दुःखप्रद जो पापकर्म तिनोका फल किसीकोभी नही होना चाहीये. पापकर्मों के फल जो दुःख तिनो भोगनेकी सर्वको कामना नही. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८ ॥ यांते जैसे कामनाके अभाव होने पर भी पापकर्मका फल जो दुःख सो भोगना ही होवे है; तैसे वासनाके अभावमात्रसे पुण्यकर्म भी फल देनेसें विना नाश नही होते. जो दुराग्रह से नाश मानो तो वेदप्रमाणसें विना यह अदृश्य अर्थ तुमारे कपोलकल्पनासें कैसे माननेमे आवे ? For Private and Personal Use Only
SR No.020885
Book TitleVedant Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVigyananand Pandit
PublisherSarasvati Chapkhanu
Publication Year1837
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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