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६॥ शिष्य उवाच-तौभी संसारके प्रतीतिका कारणीभूत विक्षेपशक्तिभी अज्ञानका कार्य होनेते ज्ञानने तिसका नाश क्यों नहीकीया यह संदेह मिटावो ॥ श्रीगुरुरुवाच-ज्ञान प्रकाशात्मक होवे है तिसका अंधकाररूप अज्ञानके साथ विरोध है और दुःखप्रद जो रागद्वेषरूप विक्षेपशक्ति है तिसके साथभी विरोध है प्रकाश तमकी न्याई और अपने उत्पत्ति करनेवाली जो संसारके प्रतीतिका हेतुभूत जो विक्षेपशक्ति है तिसके साथ विरोध नही. काहेते. जो जीवन्मुक्तिके सुखकों देवे है ज्ञानके साधन जे गुरु वेदांत ईश्वरभक्ति दैवी संपद्रूप जे ज्ञानोत्पादक सामग्री तिसके देनेहारी है यांते तिसके साथ कृतज्ञ होनेते विरोध करता नही तथा नाशभी करता नहीं जैसे मार्जार दांतोंसे मूषकों का नाश करता हूवाभी पुत्रोंकी तिन दांतोंकरके रक्षाही करे है तैसे ज्ञानभी जानना जो एकका नाश करे है अन्यकी रक्षा करे है।
७॥ शिष्य उवाच-यह जीवन्मुक्त पुरुष अज्ञा• नीके समान बंधनको क्यों नहीं प्राप्त होता है। ॥ श्रीगुरुस्वाच-यह जीवन्मुक्त पुरुष ब्रह्मज्ञानके प्रभावसे तीनदेहोंमे अहंभाव त्याग करके बंधनको नहीं प्राप्त होता औरजो अज्ञानी है सो त्रिशरीरने अहंता तथा कुटुंबमे ममता करके दोनोसे भिन्नोंमे.
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