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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २३ ) १४॥प्रश्नः-जिसको आत्मज्ञानहीन नही जान सकते है ते कौन है जो देहवालाभी देहातीत है सो संसारमें कवन है जिसको स्वकर्म फलदेनेमे असमर्थ है सोभी कवन है ॥ उत्तरं-जो जीवन्मुक्त पुरुष है सो अज्ञानीयोंसे जाननेमे आवता नही सोई शरीरवाला हुवा शरीर रहित है तिसके ही कर्म तिसको जन्म देने विषे असमर्थ है। १५ ॥ प्रभः--क्या सर्वदा रहता है क्या सर्वदा नही रहिता तीनकालमे उत्पन्न नही हुवा नेत्रसे कोन देखपरता है। उत्तरं-चिदात्मासर्वदा रहिता है. जगत् सर्वदा नहीं है व्यवहार तीनकालमे न उत्पन्नहुवाभी दृष्टिगोचर होता है. सोई श्री वशिष्ठजी कहते है हे राम. बडा आश्चर्य है जो सत्य हे तिसको नही देखते जो असत् घटादिक वंध्यापुत्र समान अविद्यारूय जगत् है सो सन्मुख गर्जना करता है ॥ १६॥ प्रश्नःहे कुमार ये विषय जे मोक्षके विघ्नरूप है ते कबतक जीवोंको विघ्नकरते है। उत्तरं॥ स्त्रीआदि विषय तबतक विघ्नकरते है जबतक निर्विकल्पात्मामे प्रीति नही उदय होती. जब उदय भई तब विषयोंमे प्रेम एसे नष्ट होता है जैसे कामीयोंका प्रेम कामिनीमे लगाहूवा मातामे प्रेम नष्ट होजाता है तहत् फिर विषय ध्यानमे विघ्न नही करसकते ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020885
Book TitleVedant Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVigyananand Pandit
PublisherSarasvati Chapkhanu
Publication Year1837
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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