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* ॥ अथाष्टादशकमलमे सामवेदकी वनसूचि उपनिषद ॥ अबसर्व शास्त्रमे अज्ञातता नाश कर्ता तथा ज्ञानीयोंको भूषण अज्ञानीकों दूषणरूप वज सूचि उपनिषत्सुनो ॥ ब्राह्मणक्षत्रिय वैश्य शूद्र ये चतुर्वर्ण है तिनो मे ब्राह्मण प्रधान है एसे वेदोमे स्मृतियोमे कहा है तिसमे प्रश्न ब्राह्मण नाम जीवका है वा देहका है वा जातिका है वा ज्ञानका है वा कर्मका है वा धर्मका है तिसमे जीवतो ब्राह्मण नदी. नूत भविष्यतमे कर्म वशसे अनेक देहोंमे भी जीवको एक निराकाररूप होने ते ॥ लीवतो ब्राह्मण नहीं ॥ जो देह ब्राह्मण कहो तो नही बनता सर्व नीच ऊच देह पंचभूतात्मकरूपसे तो एकरूप होने ते तथा जरा मरण धर्माधर्म भी सर्व देहमे तुल्य देखने ते तथा ब्राह्मण श्वेतवर्ण क्षत्रिय रक्तवर्ण वैश्य पीतवर्ण शूद्र कृष्णवर्णका भी नियम नही तथा पिता देहके जलावनेसे पुत्रको ब्रह्महत्यासे दषित होनेते देह ब्राह्मण नहीं ॥ जाति ब्राह्मण कहो तो भी नहीं बनता कारण जो दूसरी जातिमे उत्पन्न हुवे भी ब्रह्म ऋषि बहुत है जैसे ऋष्पशृंग मृगीसे कौशिक कुशाते जांबुक जंबुकीसे वाल्मीकि वल्मीकसे व्यासः कैव. तकीसे गौतम शशलीसे वशिष्ट उर्वशीसे अगस्त्य कुंभसे जन्मे है ये वार्ता पुराणमे प्रसिद्ध है,
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