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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६१) एसे अनुभव होता. यह गज है, यह अश्व है एसे अनुभव नही होना चाहीये यांते स्वप्न आ. रमा कल्पित नही अनुभव होता तो तिस दृष्ठांत से जाग्रतको आत्मामें कैसे कल्पित कहतेहो मुमुक्षु भी आत्मा मे कैसे जगतको कल्पित अनुभव करेगा. २ || श्रीगुरुरुवाच सौम्य लौकिक दृष्टिसें सर्वकार्य मात्र के उपादान अरु निमित्त यह दोनो कारणहोते है यांते स्वप्नकेभी उपादानकारण अविद्या वा अंतःकरणजानना अरु निमित्तकारण जो है सो भिन्नभिन्न जानना तिस निमित्तकारणके भेदते अनुभवकाभी भेद होवे है यह नियम जैसे है तैसेही श्रवणकरो || स्वप्नविषे जिस जिस वस्तुका अनुभवहोता है तिसका निमित्तकारण जागतअनुभवजन्य जैसा संस्कारहोते है तैसेही अविद्यारूप धारणकरती है यांते जिसपदार्थका मैहूं एसे संस्कार है तैसे देहादिकोंविषे मैब्राह्मण हुं एसा अनुभव होवे है जिस पदार्थका मेरे है एसाजो पितापुत्रादिकोंका संस्कार है तादृशों पितामातादिकोविषे मेरे है एसा अविद्याबलसे अनुभवहोवे है और जिसपदार्थका यह है एसे तटस्थवस्तुकेविषे जो यदपके ज्ञानजन्य संस्कार है तादृश गजअश्वादिको विषे यदअश्व है यद्ददस्ति है एसादी अनुभवहोवे है | For Private and Personal Use Only
SR No.020885
Book TitleVedant Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVigyananand Pandit
PublisherSarasvati Chapkhanu
Publication Year1837
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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